________________
नागवंशजों का परिचय !
[ १५७
१
आयु काय निपट छोटी है । ताका गमन भी थोरे हो क्षेत्र होय है । " श्रीमान् स्व ० पूज्य प० गोपालदासजी बरैया भी वर्तनकी उपलब्ध दुनियाको आर्यखडके अन्तर्गत स्वीकार करते हुये प्रतीत होते हैं । (देखो जैनहितैषी भाग ७ अक ६ ) तथापि श्री श्रवणबेलगोलाके मठाधीश स्व० पडिताचार्यजी भी इस मतको मान्यता देते थे । उनने आर्यखण्डको ५६ देशोमें विभक्त बताया था, जिनमें अरव और चीन भी सम्मिलित थे । (देखो एशियाटिक रिसर्चेज भाग ९
० २८२) तिसपर मध्य एशिया, अफरीका आदि देशोका 'आर्यन' अथवा 'आयबीज '' आदि रूपमें जो उल्लेख हुआ मिलता है वह भी जैनशास्त्रकी इम मान्यताका समर्थक है कि यह सब प्रदेश जो आज उपलब्ध है प्राय. आर्यखण्ड के ही विविध देश हैं । अगाड़ो पाताल स्थान नियत करते हुये इसका और भी अधिक स्पष्टीकरण हो जय | यहापर विजयार्ध पर्वतकी लबाई - चौड़ाईपर भी जरा गौर कर लेना जरूरी है । शास्त्रोंमें कहा है कि विजया २५ योजन ऊचा और भूमिपर ५० योजन चौडा है । भूमिसे १० योजनकी ऊचाईपर इसकी दक्षिणीय और उत्तरीय दो श्रेणिया है जिनपर विद्याधर बसते है और जैन मंदिर है। यह पूर्वपश्चिम समुद्रसे समुद्र तक विस्तृत है और चांदी के समान सफेद है । इस तरह विजयार्ध पर्वत ५० हजार कोश ऊचा प्रमाणित होता है; किन्तु आजकल ऊचेसे ऊचा पहाड तीस हजार
3
१ - वृन्दावन विलास पृ० १३० । २- ऐशियाटिक रिसचेज भाग ३ पृ० ८८ आर विश्वकोष भाग २ पृ० ६७१-६७४ । ३-पद्मपुराण पृ० ५८-५९ । ४ - हरिवशपुराण पृ० ५४ ।