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नागवंशजोंका परिचय ! [१६५ विघ्न हुआ सो उनमें युद्ध छिड गया। भूमिगोचरी सहस्ररश्मि पकड़ा गया । शतबाहु मुनिके कहनेसे रावणने उसे छोड़ दिया। परंतु उसने पुत्रको राज्य दे मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। फिर रावमने उत्तरदिशाके सब राजा वश किये । राजपुरनगरका मरुत यज्ञ कर रहा था, नारदके समझानेपर भी वह नहीं माना था । रावभने उसको भी वश किया। इतनेमें वर्षाऋतु आई; सो रावणने गंगातट पर ठहरकर बिताई । यही उमने अपनी पुत्री कृतचित्रा मथुराके राजा मधुको विवाह दी थी । यहासे ही उसने सम्मेदशिखरकी वंदना की थी और फिर अगाडी चलकर वह कैलाशके समीप पहुंचा था। यहांपर इंद्रका दिग्पाल दुलधिपुरका स्वामी नलकूबर रावणका सामना करनेको आया । उसने इद्रको भी खबर भेज दी । इंद्र उस समय पांडुवनके चैत्यालयोकी वदना कर रहा था । उसने आनेकी तैयारी की, इतने में नलकूवर परास्त होगया। रास्ता साफ पा रावण अगाड़ी बैताड्य पर्वतपर पहुंचे। इंद्रने भी रावणको नजदीक आया जानकर सिरपर टोप रखकर.रणभेरी बनवा दी । संग्राम छिड़ गया । रावणके योद्धा बजवेग, हस्त, प्रहस्त, मारीचि, उद्भव, बज्ज, वक्र, शुक्र, सारन, महाजय आदि थे। इन्द्रके मेघमाली, तडसंग, ज्वलिताक्ष, अरि, खेचर, पाचकसिंहन आदि थे । इंद्रकी ही पराजय हुई । रावण लौटकर लंका जाने लगा। रास्तेमें गंधमान पर्वत देखा । इधर. इन्द्र मुनि होकर अन्ततः मोक्षको गए। . इसतरह रावण आनन्दसे पातालपुरके समीप तिष्ठता राज्य कर रहा था कि पातालनगरके राजा वरुणसे रावणका युद्ध हुआ