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भगवान् पार्श्वनाथ |
अवस्था में यह कोई अनोखी बात नहीं है, यदि श्वेतांबराचार्यने चौद्ध ग्रन्थमें चातुर्याम सिद्धातका उल्लेख देखकर उसको अपने शास्त्र में स्थान दिया हो । अगाड़ी जो भगवान् पार्श्वनाथजीको वस्त्र चारण करते हुये बतलाया है, उससे यही प्रमाणित होता है कि यहां पर वास्तविक घटनाका उल्लेख नहीं किया जारहा है, क्योंकि यह स्वतंत्र साक्षी द्वारा प्रमाणित है कि भगवान् पार्श्वनाथ भी दिगंचर वेषमें रहे थे; जैसे कि हम अगाड़ी दखेंगे । तिमपर उक्त वे ० सूत्र में गौतम गणधर को अलग संवसहित एकाकी विचरते प्रगट किया -गया है | वहां भगवान् महावीर का कुछ भी उल्लेख नहीं है, किन्तु यह प्रकट है कि भगवान महावीर संघपहित विहार करते थे और उनके प्रधान गणधर गौतमस्वामी सदा ही उनके साथ रहते थे । ० के सूत्रकृताङ्ग (२/६) गोशालने इसी वातको लक्ष्य करके भगवान महावीरपर आक्षेप किया है | श्वेताम्बरोंके उवासँग दमाओं के ग्रन्थसे भी भगवान संघ में गौतम गणधरा साथ रहना प्रमाणित है । अतएव यह किप तरह पर संभव हो सक्ता है कि गौतमस्वामी अकेले ही केशी ऋषिको श्रावस्ती में मिले हों ? इस दशा में श्वे ० सूत्रके उक्त कथनको यथार्थ सत्य स्वीकार करलेना जरा कठिन है; परन्तु इतना तो स्पष्ट ही है कि उसका आधार एक ऐतिहासिक तथ्य है जो भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महावीर के धर्ममें एक सामान्य अन्तर प्रगट करता है । अस्तु;
'उत्तराध्ययन सूत्र में अगाडी बहुतसे छोटे मोटे मतभेदों का उल्लेख किया गया है, जिनमें मुख्य मुनिलिङ्ग विषयक है । शेषमें प्रतिनग्ण संबंधर्मे वहां कहीं भी कुछ उल्लेख नहीं है । इस मुनिलिङ्ग