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भगवानके मुख्य शिष्य। [३११ उल्लेख है। उपरांत श्वे. मुनि आत्मारामनीने स्वरचित 'अज्ञानतिमिरभास्कर में भगवान पार्श्वनाथनीकी जो शिष्यपरंपरा दी है, वह इनसे भिन्न है । वह भगवान्के प्रमुख शिष्यका नाम आर्यसमुद्र लिखते हैं और फिर श्री शुभदत्त गणधर, श्री स्वामी प्रभासूर्य, श्री हारदत्तनी और श्री केशीस्वामीका उल्लेख क्रमशः करते हैं। इसतरह पर भगवान पार्श्वनाथजीके मुख्य गणघरोंका ठीकसर परिचया पालना आन कठिनसाध्य है और इस अवस्थामें केवल यही निःसंशय, स्पष्ट है कि भगवान के मुख्य गणधर दश थे। इन सबकी अध्यक्ष-- ताम उक्त मुनिगण विचरते थे। प्रमुख गणधर स्वयंभू मनःपर्ययज्ञानी थे और उपरान्त उनको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी।
इनके अतिरिक्त श्री पार्श्वनाथनीकी शिष्यपरम्पराके विशेष प्रख्यात् मुनि हमको श्री पिहिताश्रव नामक मिलते हैं। दिगंबर जैन शास्त्रोंमें इनका विविध स्थानोंपर उल्लेख मिलता है । श्वेतांबर यति आत्मारामजी भी इनके विषयमें कहते हैं कि 'यह स्वामी प्रभासूयेके कई साधुओमेंसे एक थे। दिगम्बर जैन शास्त्रोमें इनको भगवान पार्श्वनाथनीकी शिष्यपरम्पराका एक साधु लिखा है और बतलाया है कि इनके एक बहुश्रुती शिप्य बुद्धिकीर्ति नामक थे, जिन्होंने भ्रष्ट होकर क्षणिकवादका प्रचार किया था । यह बुद्धिकीर्ति चौद्धधर्मके संस्थापक म० गौतमबुद्धके अतिरिक्त और कोई अन्य व्यक्ति नहीं थे। म० बुद्धने स्वयं अपने मुखसे एक स्थानपर जैनमुनि होना स्वीकार किया है। ऐसा मालम होता है कि म०
१ क पसूत्र १६१ १ २ जनहिषी भाग ७ अक १२ पृ० २ । ३-जैन हितेपी भाग ७ अंक १२ पृ. 1-दर्शनमार -10 । १३-मान्दर्ग गौतमबुद्ध ५० १५ ।