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भगवान्के मुख्य शिष्य। [३१९ -महावीरसे किञ्चित् पहले तक विद्यमान रहना प्रमाणित होता है । यह नागकुमार मगधदेशके कनकपुर नामक नगरके राजा जयंधरकी रानी पृथ्वीमतीके पुत्र थे। इनका मूल नाम प्रतापंधर था। बौद्धोंके 'उदेनवत्यु' नामक कथानकमें कौशाम्बीके एक राजाका नाम परन्तप 'लिखा है। यह म० बुद्धसे "किञ्चित पहलेतक मौजूद थे और इनका पुत्र उदायन था, जो वीणावादनमें बहुप्रसिद्ध था । सभव है कि प्रतापंधरका ही उल्लेख बौद्धोंने परन्तपके रूपमें किया हो। जो हो, इन प्रतापंधरने अपने पिता द्वारा घरसे निकाले जानेपर बहु देशोंमें पर्यटन किया था और विविध स्थानोंकी राज्यकन्यायोंसे याणिग्रहण किया था। अन्ततः यह अपने नगरको वापिस प्रहंच गये थे और राजा जयंधरने इनके सुपुर्द राज्य करके स्वयं श्री पिहिताश्रव मुनिके निकट दीक्षा ग्रहण करली थी। इसके अति रिक्त पिहिताश्रव मुनिका उल्लेख इस कथामें कई जगह और भी आया है।
श्री 'पुण्याश्रव कथाकोष' में श्री भविष्यदत्तकी कथामें भी पिहिताश्रव मुनिका कथन है । वहा लिखा है कि भविष्यदत्तने पिहिताश्रव मुनिसे दीक्षा ली थी; परन्तु इस ग्रंथसे प्राचीन कवि धनपालके भविष्यदत्त चरित्र में मुनिका नामोल्लेख नहीं है ।
श्री “सम्यक्त्व कौमुदी' की विष्णुश्रीकी कथामें भी पिहिताश्रव मुनिका उल्लेख है। दक्षिण देशके वेनातट नगरके राजा
१-लाइफ एण्ड वर्क आफ बुद्धघोष पृ० ११९ । २-पुण्याव -कथाकोष पृ० १७९ । ३-पूर्व० पृ० १९२ । ४-श्री सम्यक्त्व को ५ .. पृ० ८४ ।