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धर्मोपदेशका प्रभाव । [३०१ थी और बहुतसे लोग उनके संप्रदायको अचेलक समझते हैं; परन्तु यह भ्रम है। अचेलक नामका कोई सम्प्रदाय-विशेष प्राचीन भारतमें नहीं था। 'अचेलक' शब्दका व्यवहार उस कालमें संब ही संप्रदायके नग्न साधुओंके लिये होता था; तिसपर जैन साधुओंके लिये वह विशेषतः प्रयोनित किया जाता था। अस्तु; जैन मुनिदशासे भृष्ट होकर पूर्णकाश्यपका अपने मूल विश्वासको विकृतरूप देना स्वाभाविक ही था; क्योंकि उसपर भगवान् पार्श्व'नाथके धर्मोपदेशका खासा प्रभाव पड़ चुका था। पूर्ण काश्यपका सम्बन्ध आजीविक संप्रदायसे रहा था, ऐसा प्रतीत होता है। उसकी मृत्यु ईसासे पूर्व ५७२वें वर्षमें हुई अनुमान की जाती है।
इनके बाद ककुद कात्यायन (पकुढ काञ्चायन)को ले लीजिए। यह म० बुद्धके पहले होचुके थे, और ब्राह्मण थे, यह प्रकट है। बुद्धघोषने लिखा है कि कात्यायन शीतनलको व्यवहार में नहीं लाता था और आवश्यक्तानुसार उष्णजलको काममें लेता था। वह शीत जलमें जीव मानता था। यहां भी भगवान पार्श्वनाथजीके मन्तव्यके स्पष्ट दर्शन होते हैं। उन्होंने शीतनलमें जीव बतलाया था और जैन मुनियोंको उसका व्यवहारमें लेना मना था, यह बौद्ध ग्रंथोंसे भी प्रकट हैं, तथापि उसने काय, सुख, दुःख, जीव आदि शब्द व्यवहारमें लिए थे और ये मूलमें जैन शब्द ही हैं। साथ ही जो
१-धीर वर्ष ३ संक ११-१२ । २-प्री० बुद्धि० इन्डि० फिला० पृ० २७७ । ३-पूर्व० पृ. २८१-२८२ । ४-सुमगलविलासिनी भाग १ पृ० १४४ । ५-पूर्व० पृ० १६८ । ६-प्री० बुद्धि० इन्डि० फिला 'पृ. २८५ ।