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नागवंशजोंका परिचय ! [ १९५ बीचमें आसक्ता है, इसलिये वहांपर हनूमानका समुद्र भेदकर जाना लिखा है, वह ठीक है । उपरांत वहांपर भवनोन्माद वनमें समुद्रकी शीतल पवनका आना बतलाया है वह भी इस बातका योतक है कि पाताल समुद्रके किनारे था, किन्तु वहाके राजा वरुण
और राजधानी पुण्डरीकणीके विषयमें हम विशेष कुछ नहीं लिख सक्ते हैं । अतएव जैन पद्मपुराणके अनुसार भी पाताल वही प्रमाणित होता है जो आजकल विद्वानोंको मान्य है।
जैन 'उत्तरपुराण'से भी इसी बातका समर्थन होता है । वहां प्रद्यम्नको विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीके मेघकूट नगरमें स्थित बतलाया है। वहांसे उसे बराह बिलमें गया लिखा गया है, जहां उसने वराह जैसे देवको वश किया था। अगाड़ी वह काल नामक गुफामें गया जहां महाकाल राक्षसदेवको उसने जीता था। वहांसे चलकर दो वृक्षोंके बीचमें कीलित विद्याधरको उसने मुक्त किया था। फिर वह सहस्रवक्त्र नामके नागकुमारके भवनमें गया था और वहा शंख बजनेसे नाग-नागनी उसके सम्मुख प्रसन्न होकर आए थे। उन्होंने धनुष आदि उसे भेंट किये थे। वहासे चलकर कैथवृक्षपर रहनेवाले देवको उसने बुलाया और उस देवने भी उसको आकाशमें लेजानेवाली दो चरणपादुकायें दी । अगाड़ी अर्जुनवृक्षके नीचे पाच फणवाले नागपति देवसे उसने कामके पांच बाण प्राप्त किए । वहांसे चलकर वह क्षीरवनमें गया; वहाके मर्कटदेवने भी उसे भेंट दी थी। आखिर वह कंदवकमुखी बावड़ीमें पहुंचा था और वहांके देवसे नागपाश प्राप्त किया था।
१ पद्मपुराण पृ. ३१२...