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नागवंशजोंका परिचय! [२०१ करनेमें असमर्थ रहे हों । सारांशतः पातालमें बसनेवाले नागवंशी मूलमे मार्य थे और उन्हें जैनधर्ममें प्रतीति थी तथापि भगवान पार्श्वनाथजी पर फणका छत्र लगाकर जिस राजाने अहिच्छत्रमे उनकी विनय की थी वह भी इसी वंशका था। वह धरणेन्द्र के साथ नाम सामान्यताकी अपेक्षा ही भुला गया दिया है। धरणेन्द्रके पर्यायवाची शब्द नागपति, अहिपति, फणीन्द्र आदि रूपमे थे और यह नागवंशी राजाओके लिये भी लागू थे; क्योकि हम जान चुके है कि इन जातियों में की ह्युग-नु जातिसे नाग शब्दकी और अनि जातिसे अडि शब्दकी उत्पत्ति हुई थी। उरग-नागोका' अधिपति जो उसे बताया है, वह उनकी ' उइगरप्स' (Uigurs )२ जातिकी अपेक्षा होगा तथापि फणीन्द्र भी इन्हींमेकी एक जाति फणिक अथवा पणिकके राजाका सूचक है। पणिक या फणिक एक विदेशी जाति थी, यह एक जैन कथासे भी प्रकट है। इस कथामें फणीश्वर शहरके राजा प्रजापालके राज्यमें सेठ सागरदत्त और सेठाणी पणिकाका पुत्र पणिक बतलाया गया है । यह सेठपुत्र पणिक कदाचित भगवान महावीरके समवशरणमे पहुंच गया और उनके उपदेशको सुनकर यह जैन मुनि होगया। अन्तः गंगाको पार करते हुये नांवपरसे' यह मुक्त हुआ था। यहां पर देश, सेठाणी और सेठपुत्रके नाम पणिक-वाची हैं; जो उनका सम्बन्ध पणिक जातिसे होना स्पष्ट कर देते हैं । राजा और सेठके नाम केवल पूर्तिके लिये तद्रूप रख लिये गये प्रतीत होते हैं। पणीश्वर शहर फॅानीशिया (Phoenecit)
१-पार्वाभ्युदयके टीकाकार योगिराट् यही लिखते हैं, यथा'नागराजन्य साक्षात् नागाना राजानः उरगेन्द्राः तेषामपत्यानि नागराजन्याः।' प० २६५। २-इन्डि. हिस्टॉ० क्वार्टी भाग १ ए. ४६० । ३-पूर्व० भाग २ पु० २३२-२३५। ४-आराधना कथाकोष भाग २ पृ. २४३