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भगवानका धर्मोपदेश !
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- बुद्ध और मक्खलिगोशाल जैसे उत्कट प्रचारकोंपर पड़ा था, वैसे ही भगवान पार्श्वनाथ प्रभावसे उनके समय के धार्मिक वातावरण में एक क्रांति खडी हो गई थी, यह हम अगाडी देखेंगे । यहां पर तो यह देखना मात्र इष्ट है कि भगवानने अपने धर्मोपदेशमे कहा क्या था ?
जैन मान्यता है कि तीनकाल और तीनलोकमें जबजब जो जो तीर्थंकर होगे, उनके धर्मो देश भी वैसे ही एक समान होंगे। उनमें एक दूसरे से किञ्चित् भी अन्तर नहीं पड़ सक्ता है । यह एक बड़ा ही अटपटा और अनोखा सा दावा है, परन्तु ध्यान देनेसे इसकी सार्थकता प्रकट होजाती है। बेशक यह जीको नहीं लगता कि हर समय के हर तीर्थंकरका धर्मोपदेश एक ही प्रकारका और एक ही ढगका हो । यदि उनका धर्मोपदेश एक ही प्रकार और एक ही ढगका हरसमय होता मान लिया जाय, तो फिर विविध तीर्थंकरोंका कालान्तर में अवतीर्ण होना कुछ महत्वशाली रहता भी नजर नहीं पडता, क्योकि समयकी परिस्थिति हर समय एकसी नहीं रहती और एक अमुक प्रकारकी परिस्थिति के अनुकूल कहा गया उपदेश एक अन्य प्रकारकी परिस्थितिके लिये समुचित नही - रह सक्ता और यह स्पष्ट है कि प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक कालमें संसारी जीवोंकी दशा कभी भी एक समान नही रहती है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके अनुसार उनकी दशा पलटती रहती है । चौथे कालके जीवोंसे आजकल के जीवोकी आयु, काय, बुद्धि, संह नन आदि सब बातें बहुत ही अल्प है और अबसे अगाडीके जीवोकी हालत इससे भी बदतर होगी, यह जैन शास्त्रोंका कथन है । स्वय