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भगवानका धर्मोपदेश ! [२४३ पस्थापना' संयमका उपदेश दिया है।' यहां मूल गाथामे दो जगह 'च' (य) शब्द आया है। इसको लक्ष्य करके प्रसिद्ध जैन विद्वान् पं० युगलकिशोरजी लिखते है कि 'एक चकारसे परिहारविशुद्धि आदि चारित्रका भी ग्रहण किया जासक्ता है और तब यह निष्कर्ष निकल सक्ता है कि ऋषभदेव और महावीर भगवान्ने सामायिकादि पांच प्रकारके चारित्रका प्रतिपादन किया है जिसमें छेदोपस्थापनाकी या प्रधानता है। शेष वाईन तीर्थंकरोने केवल सामायिक चारित्रका प्रतिपादन किया है। यहांपर यह स्पष्ट है कि यद्यपि वर्तमानकालके २४ तीर्थक्रोके धर्मोपदेशके मूल भादमें कोई विशेप अन्तर नहीं था । परन्तु उनके विधायक क्रममे भेद अवश्य था । और यह क्यो था? इसका उत्तर यही है कि समय प्रभावकी वजहसे यह भेद था। यही बात श्री वट्टकेराचार्य निम्न दो गाथाओमें बतलाते है:'आच वखविभजि, विण्णा, चावि सुहदरं होदि । एदेण कारणेण दु महबदा पच पण्णत्ता ॥ ३३ ।। आदीए दुन्धिसोधणे णिहणे तह मुछ दुरणुपालेया। पुरिमाघ पच्छिमा विहु कप्पाकप्पं ण जाणंति ॥ ३४॥"
अर्थात्-'पांच महाव्रतो (छेदोरस्थापना)का कथन इस वनहसे किया गया है कि इनके द्वारा सामायिका दूसरोंको उपदेश देना, स्वय अनुष्ठान करना पृथक् रूपसे भावनामें लाना सुगम होजाता है और अतिम तीर्थ में शिष्य जन कठिनतासे निर्वाह करते हैं, क्योंकि वे अतिशय वक्र-स्वभाव होते हैं। साथ ही
१-जैनहितैषी भाग १२ अक ७-८ पृ. ३२५-३२६ ।