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__२४८ भगवान पार्श्वनाथ ।
भावके प्रतिकूल और उमको मेटनेवाला नहीं होता है। श्वेताम्बरोंके 'उत्तराध्ययन सूत्र में ऐपा ही वर्णन हमें 'केशी और गौतम 'के सम्बादरूपमें मिलता है । वे शी श्रीपार्श्वनाथनीकी शिष्य परम्पराके एक आचार्य हैं और गौतम भगवान महावीरनीके प्रधान गणधर है । इन दोनों महानुभावोंका संघमहित आकर श्रावस्तीके उद्यानों में ठहरना और फिर परम्पर समाधान करना बताया गया है । वहां लिखा है:
"पुच्छ भन्ते जहिच्छन्ते केसिं गोयममनवी। तओ केसी अणुन्नाए गोयमं इणमब्बवी ।। २२ ।। चाउजामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ॥ २३ ॥ एगकज्जपवन्नाणं विसेसे किं तु कारणं । धम्मे दुबिहे मेहावि कह विप्पञ्चओ न ते ॥ २४ ॥ तओ केसि बुवन्तं तु गोयमो इणमव्ववी । पन्न समिक्खए धम्मनत्तं तत्तविणिच्छियं ॥ २५ ॥ पुरिमा उज्जजडा र वंकनडा य पच्छिमा। मज्ज्ञिमा उज्जुपन्ना उतेण धम्मे दुहा कए ॥ २६ ॥ पुरिमाणां दुबिसोझो उ चरिमाणं दुरणुपालो। कप्पो माझमगाणं तु मुविसोज्यो मुपालो ।। २७ ।। साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो।"
इसका भाव यही है कि ऋप केशीने गौतमगणघरसे पूछा या कि यह क्या कारण है जब कि दोनों तीर्थरोके धर्म एक ही उद्देश्य के लिए हैं तब एक चार व्रत और एकमें पाच बताये गये