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भगवानका धर्मोपदेश! [२४९ हैं । भगवान पार्श्वनाथनीने 'चाउज्जाम' धर्म मुख्य बतलाया था __ और भगवान महावीर 'पंचमहाव्वय' का प्रतिपादन करते हैं। इस‘पर गौतम गणधर यह उत्तर देते बतलाये गये हैं कि 'बुद्धि धर्मके सत्यको और यथार्थ वस्तुओको पहिचानती है । पहलेके ऋषि सरल थे परन्तु समझके कोता थे और पीछे के ऋषि अस्पष्टवादी और समझके कोता (Slow) थे, किन्तु इन दोनोके मध्यके सरल और बुद्धिमान् थे । इसलिये धर्मके दो रूप हैं । पहलेके मुश्किलसे धर्म व्रतोंको समझने थे और पीछेके मुशकिलसे उनका आचरण कर सके थे, परन्तु मध्यके उनको सुगमतासे समझते और पालते थे।'' यहां भी वही भाव है। समय प्रवाहले प्रभावको व्यक्त किया गया है, यद्यपि धर्मके मूलभावको बुद्धि नहीं भुलाती है यह स्पष्ट कह दिया गया है । दिगम्बराचार्य के उपरोक्त वक्तव्यके अनुसार यहां भी भगवन् महावीरके चारित्र धर्मका प्रति पादन " पांच महाव्रत " रूप बतलाया गया है। और वह मध्यके २२ तीर्थंकरोंके निरूपण क्रमसे उन्हीं कारणोवश विभिन्न बतलाया है, जिनको दिगम्बराचार्यने प्रकट किया है। यहांपर यदि अन्तर है तो सिर्फ ' चातुर्यामधम' का प्रतिपादन भगवान पार्श्वनाथ द्वारा बतलाने में है। दिगम्बराचार्य भगवान पार्श्वनाथ एवं मध्यके अन्य तीर्थकरोंका धर्म सामायिक-संयमरूम वतलाते हैं और श्वेताम्बरमूत्र में वह चार प्रकारका बतलाया गया है। श्वे० के मूलसूत्र में इस 'चातुर्याम' शब्दकी कुछ भी व्याख्या नहीं की गई है, परन्तु उपरान्तके श्वेताम्बर टीकाकार उमका भाव
१-जैनमूत्र (SB E ) भाग २ पृ. १२२-१२३ ।