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ज्ञानप्राप्ति और धर्म प्रचार ।
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कुरुकौशलकाशी सुह्यावंती पुंड्र मालवान् । अंग वंग कलिगाख्य पंचालमगधाभिधान ।। १८ ।। विदर्भभद्र देशाख्य दर्शर्णोदीन बहून्जनः । विहारमहाभूत्या सन्मार्ग देशिनोद्यतः ।। १९ ।। २३ ॥ अर्थात् - जिनेन्द्ररूपी भानुके उदय होनेसे साधु मुनीश्वरोंका संचार होगया और कुलिगी जटिल आदि पाखंड रूप अधकारका उसी तरह नाश होगया जैसे चोरोंका होजाता है । फिर भगवान्का पवित्र विहार कुरु, कौशल, काशी, अवंती, पुंडू, मालवा, अग, बंग, कलिंग, पचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दर्शार्ण आदि देशों में महाविभूतिके साथ होगया था । यह सारे ही देश आजकल इसी भारतके अन्तर्गत मिल जाते है । इसी तरह एक अन्य आचार्य भगवान् के विहारमें आकर पवित्र हुये देशों का उल्लेख एक दूसरे रूपमें ये करते हैं: -- यूं
'तत्वभेदप्रदानेन श्रीमत्पार्श्वप्रभुर्महान् ।
जनान् कौशलदेशीयान कुशलान संव्यध्यद्दृश ॥ ७६ ॥ भिंदन मिथ्यातमोगाढं दिव्यध्वनिप्रदीपकैः । काशीय देशीयकोकान् स चक्रे संयमतत्परान || ७७|| श्रीमन्मालवदेशीय भव्यलोकसु चातकान् । देशनारसधाराभिः प्रीणयाभास तीर्थराट् ॥७८॥ अवंतीयान् जनान् सर्वान् मिथ्यात्वानलतापितान् । रयान्निर्वापयामास पार्श्वचंद्रामृतैः ॥ ७९ ॥ गौर्जराणां जनानां हि पार्श्वसम्राट् जितेंद्रियः । मिथ्यात्वं जर्जरंचक्रे सद्वचः शस्त्रघातनैः ॥ ८०