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नागवंशजोका परिचय ! [१९३ जनधर्मका अस्तित्व होना भी नमवित होजाता है । इस अवस्थामें जो हम लंकाको वहां पाते है वह ठीक ही है । स्वयं हिन्दू शास्त्र भी इस वातको अस्पष्टरूपमें स्वीकार करते हैं । वह पहले शंखद्वीप (मिश्र) मे ब्राह्मणोंका अस्तित्व नही बतलाते हैं और राक्षसों एवं म्लेच्छोंको बसते लिखते हैं, जो जैन ही थे, जैसे कि हम पहले बतला चुके हैं। इसके अतिरिक्त 'वृहद हेम' नामक हिन्दू शास्त्रमें, पांडवोंका शंखद्वीपमें काली तटपर आना लिखा है। वहांपर उन्हें एक त्रिनेत्रवाला मनुष्य राजसी ठाठसे उपदेश देता मिला था, जिसके चारों ओर मनुष्य और पशु बैठे हुए थे। यही उपरांत 'अमानवेश्वर' नामसे ज्ञात हुआ था। यह वर्णन जैन तीर्थंकरको विभूतिसे मिल जाता है । तीर्थकर भगवान भूत, भविष्यत् वर्तमानको चराचर देखनेवाले रत्नत्रयकर सयुक्त सम्राटोसे बड़ी चढ़ी विभतिरूप समवशरणमें मनुष्यों और पशुओ और देवों. सबहीको समानरूप उपदेश देते हैं, यह प्रगट ही है । अतएव हिन्दू शास्त्र यहां परोक्षरूपमें जैनधर्मका ही उल्लेख करता प्रतीत होता है। इस तरह लकाका मिश्रमें होना ही उचित जंचता है।
__लंकासे पातालपुर समुद्र भेदकर जाया जाता था, यह पापुराणके उल्लेखसे स्पष्ट है । आजकल पातालपुर सोगडियन देश • (Sogdiann) की राजधानी अश्म अथवा अक्षयना (Oriana) का रूपान्तर बतलाया गया है। परन्तु हिन्दूशास्त्रोंमें पातालपुर एक नगरके रूप में व्यवहृत है और जैनशास्त्र इसे एक प्रदेश बतलाते हैं;
१-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ प० १०० २-पूर्व० पृ० १७५ ३-इन्डि. हिस्टॉ० क्वार्टर्ली भाग १ पृ. १३६
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