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नागवंशजोंका परिचय! । १८५ इसका समर्थन ग्रीक भूगोलवेत्ता भी करते हैं, यह हम पहले देख चुके हैं । तथापि गणितशास्त्र ‘गोलाध्याय ' के कर्ता भास्कराचार्य ( सन् १११५ ई० ) का निम्न श्लोक भी हमारे ही कथनका समर्थन करता है:-- 'लङ्काकुमध्ये यमकोटिरस्याः प्राक् पश्चिमे रोमकपट्टनं च । अधस्ततः सिद्धपुरं सुमेरुः सौम्येऽथ यामे वड़वानलश्च ॥'
यहां लङ्काके मध्य पूर्व में यमकोटिस्थान और पश्चिममे रोमकपट्टन बतलाये हैं । इनसे अध भागमें सिद्धपुर-सुमेरु बतलाया और दक्षिणमे बड़वानलका होना लिखा है । अब यदि हम मिश्र ही लंका मान लेते हैं तो यमकोटि, जो सभवतः यमका स्थान ही है, वह लकाके मध्यपूर्वमें मिल जाता है । हिंदुओंके पद्म और भागवतपुराणमें जो कृष्णके गुरु काश्यपकी स्त्रीकी खोजमें कृष्णके जानेकी कथा है उसमें कृष्णके वराहद्वीप (यूरोप) की ओर जानेपर वरुणके कहनेसे वह वहांसे नीचे उतरकर यमपुरीमें पहुंचे थे। कृष्ण भारतसे उधर गये थे; इसलिये मध्य एशिया आदि प्रदेश तो वह लांघ गए थे और इस अवस्थामें यूरोपकी सीमासे उनका नीचेको आगमन अफ्रीकामे ही होसक्ता है। इसलिए यमपुरी लंका (वरबर स्थान-मिश्र) के मध्यपूर्वमें होसक्ती है। आगे रोमकपट्टन जो पश्चिममें बतलाई गई है वह भी ठीक है । यह रोमकपट्टन आजकलका रोम (Roms) है और यह उत्तर पश्चिममें स्थित बराहद्वीप (यूरोप) में था। इसलिये यह भी ठीक मिल जाता है । अधो
१-भुवनकोष १७ २-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ० १७९ ३-पूर्व• पृ. २३१