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१९०] भगवान पार्श्वनाथ । इसिस उसकी लाशको ढूंढ निकालती है और ओसिरिसके पुत्र होरसकी सहायतासे उसे पुन. जीवित करके परमात्मपदमें पघरवा देती है, जहां वह अमर जीवनको प्राप्त होता है। इसिस ओसिरिसको ढूंढती हुई अपने पर्यटनमें सब कठिनाइयो आदिका मुकाविला करती है और इसी लिए उसने गुप्तवादको जन्म दिया है कि उसके चित्रपटको देखकर हरकोई उन कठिनाइयोंको सहन करनेकी शिक्षा ग्रहण कर ले, जो कि उसे आशाकी रेखाके दर्शन करा दे । इसमें शक नहीं कि यह गुप्तवाद-एक नवीन सुखमय जीवनको प्राप्त करनेका मार्ग बतानेवाला है। अस्तु. उपरोक्त कथानामे ससारी आत्माके मोक्षलाभ करनेका ही विवरण है । ओसिरिस शुद्धात्माका द्योतक है, जो पुद्गल (सेठ) के वशीभूत होकर
अपने स्वाभाविक जीवनसे हाथ धोकर भवसागरमें (नीलमें) रुलता फिरता है । इस भवसागरमे शुद्धात्माको तपश्चरणकी कठिनाइयां सहन करनेवाले और सर्वथा व्यान करनेवाले ऋषिगण ही पासक्ते हैं। इसलिए इसिस ऋषिगणका ही रूपान्तर है। ऋषि और भृष्ट शुद्धात्मासे ही तीसरा व्यक्ति अहंत (Horus होरस) उत्पन्न होता बतलाया गया है. क्योंकि ऋषिगणके लिये अर्हतपद ही एक द्वार है जो उसे शुद्ध-बुद्धबनाकर परमात्मपदमें पधरवा देता है। इसलिये ओसिरिस अन्तत सिद्धपरमात्मा ही है ! अईत और होरस शव्दकी सादृश्यता भी भुलाई नहीं जासक्ती; यही बात
ऋषि और इसिस शब्दमें है । ओसिरिस भी सिद्ध शब्दका रूपा-' - न्तर होसक्ता है । बसिरिस (Ysiris) रूपमें उसकी सहशता
१-कान्नलयन्स ऑफ ऑपोजिटम पृ. २४८ २-पूर्व० पृ० २४७