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१७.] भगवान पार्श्वनाथ । नामसे और न्यूवियाको कुशस्थलकी सनासे उल्लेख करते प्रतीत होते है । यह भी सभव है कि जेन शास्त्रकारोके निकट अवेसिनिया कुराढीप रहा हो और इथ्यूपिया पाताल लंका क्योकि इथ्यपियामें ही पाताल-लंकाके पर्वत व वन आदि मिलते हैं। अस्तु,
उस समय करायलमे वैदिक धर्मके क्रियाकाण्ड यज्ञादिका प्रचार था, यह भी पद्मपुराणमे स्वीकार किया गया है। अतएव यह स्पष्ट है कि अवेसिनियामे यादव लोग भी पहुंचे थे: जिनमेसे उपरात भगवान नेमिनाथका जन्म हुआ था और जो जनशास्त्रोंमें जैनधर्मानुयायी बताये गए है । अवेसिनिया ही कुगद्यदेश है, इसका समर्थन यादवेन्द्र शूरसेनके पौत्र वसुदेव वर्णनसे भी होता है। जब वनुदेव कुगद्यदेशके शौर्यपुरसे निकलकर अंगदेशके चम्पा नगरमें जाकर विद्याधरके विमानसे गिरे थे, तब उन्होंने अचंभेमें पडकर लोगोसे पूछा था कि यह कौनसा देश है ? यदि मयुराके पास ही गौर्यपुर होता तो अंगदेश और चम्पाका परिचय वसुदेवको जरूर होना चाहिये था और वहापर पहुंचने पर उन्हें विस्मित होना आवश्यक न था। साथ ही शौर्यपुरके गंधमादन पर्वतपर जो जैन मुनिको केवलज्ञान होना बतलाया गया है, वह भी ठीक है, क्योकि अबेसिनियामें जैन मुनि पहले विचरते थे, यह बात ग्रीक लोग बतलाते हैं। इस गामें अवेसिनियाको ही पाताल-लंका मानना ठीक-जंचता है। उसके शब्दार्थ भी इसी व्याख्याका समर्थन करते है; क्योंकि लका ( मिश्र ) से नीचे ( अघो-पाताल )की ओर ही अवेसिनिया थी।
यदि ला मित्र और पाताल-लंका अवेमिनिया एवं १-पद्मपुगण पृ० ६.१ ।