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भगवान पार्श्वनाथ |
वारण करनेवाला पुर | तिसपर वहांके राजाका नाम जो समुद्र बताया है, वह भी इसी वातका द्योतक है। नदी के किनारेपर वसनेवालों का राजा समुद्ररूप में उल्लेखित किया गया प्रतीत होता है। इस अपेक्षा वेलंधरपुर मध्य ऐशियामें वृहद्र पामीर (Great Pamir) पर्वतके निकट अवस्थित प्रतीत होता है ' । इस हालत में रामचन्द्रजी बेहद उत्तर में चले गये मालूम होते है किन्तु उनका इस तरह घूमकर जाना राजनीतिकी दृष्टिसे ठोक ही थाः क्योंकि दक्षिणभारतके अगाडी रत्नद्वीपसे तो रावणके वंशज ही रहते थे । इसलिये घूमकर ठीक लंकापर जा निकलनेसे उनको बीचमें युद्ध में अटका रहना नहीं पड़ा था । उघर से जाने में एक और बात यह थी कि इन प्रदेशोंकी योद्धा जातियोको भी वे अपना सहायक बना सके थे । तिसपर गरुडेन्द्र उनका सहायक मित्र बतलाया गया है और उपरान्त उसने उनकी सहायताको रणक्षेत्रमे सिवाहन और गरुडवाहन देव भेजे थे । इन गरुडके पखोंकी पवन क्षीरसागर के जलको क्षोभरूप करनेवाली और रावण के सहायक सर्पोको भगाने - वाले बताई गई है । इस अवस्थामें यह गरुडवाहन कैंसपियन समुद्रके निकट बसनेवाले शाक्य ( Scythian ) जातिके योद्धा होना चाहिये, क्योंकि इसी समुद्रको क्षीरसागर भी पहले कहते थे । यद्यपि जैन शान्त्र में गरुडेन्द्र देवयोनिका माना गया है अतएव रामचंद्रजीका इधर होकर जाना बहुत ही मुझका काम था । नेरपुर से आगे वह सुचेल पर्वतपरके सुवेलनगर में आये कहे गये
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