________________
नागवंशजोंका परिचय । [१७५ नहीं होसक्ता; क्योंकि शौर्यपुरके निकट उद्यानमें एक गंधमादन पर्वत बतलाया है; हांपर सुप्रतिष्ठ नामक मुनिराजको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी।' गंधमादन पर्वत हिमालयका पश्चिमी भाग माना जाता है; परंतु उसका कोई निकटवर्ती प्रदेश भी कुशद्यदेश नहीं कहलाता है। इसके अतिरिक्त गंधमादन पर्वतका उल्लेख द्वारिकाके निकट रूपमें भी हुआ है; परंतु वहां जैनाचार्य बरड़ो पर्वत श्रेणीको ही गंधमादन मानकर वह उल्लेख करते हैं। हिन्दू शास्त्र द्वारिकाको कुशस्थलीमें बतलाते हैं; परतु यहा भी वही आपत्ति अगाड़ी आती है कि द्वारिकाके निकट उद्यानमें गंधमादन पर्वत नहीं था। अतएव यह कुशद्यदेश उपरोक्त कुशद्वीप अर्थात् अवेसिनिया ही होना चाहिये; जहांपर यादवोका आना प्रमाणित है। हिन्दुओंके माने हुए कुशद्वीपमें गंधमादन पर्वतका उल्लेख भी मिलता है। इसलिये अवेसिनियाको ही कुशद्यदेश समझना ठीक जंचता है। इस अवस्थामें पाताल-लका और कुशद्यदेश एक ही स्थानपर परिचित होते हैं । इसका अर्थ यह होसक्ता है कि पाताल-लंका भी उपरान्त कुशद्यदेशके नामसे प्रसिद्ध होगई थी जैसे कि हिन्दूशास्त्र पाताललंकाका उल्लेख कहीं करते ही नहीं है और अवेसिनिया इथ्यूपिया एवं न्यूबियाके सारे प्रदेशको कुशद्वीमें गर्भित करते हैं; परंतु रावणके समयमें जैन ग्रन्धकार अवेसिनिया और इथ्यूपियाको पाताल-लंकाके जित वतलाये है, पर यह राजा कौशलके ये। इसलिए यहा कुशस्थलसे भाव काशलके ही प्रगट होते हैं ।
१-हरिवशपुराण पृ० २०५ । २-दी इन्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली भा० १ पृ. १३५ । ३-नेमिनिर्वाणकान्य ५३-६१ । ४-महाभारत सभा० १३ अ० । ५-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ. १६७.