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भगवान पार्श्वनाथ |
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कुछ मालूम हो गया है, पर अभीतक नागोके निवासस्थान पाताल लोकके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं हुआ है । आधुनिक विद्वानोने दैत्य, दानव, असुर, नाग, गरुड आदिका निवास स्थान हूण जातियो का मूलगृह मध्यऐशिया और तुर्किस्तान बतलाया है । उनके अनुसार नाग, गरुड आदि सब ही हूण अथवा शक जातियोंके ही भेद है । इसको उन्होंने सप्रमाण सिद्ध भी किया है । उनका यह कथन जैन शास्त्रोंसे भी ठीक ही प्रतिभाषित होता है, यह हम यहापर पातालके विषयमें विचार करते हुए निर्दिष्ट करेंगे।
इस स्पष्टीकरण के लिये हमे मुख्यत: श्री पद्मपुराणजीका आधार लेना पड़ेगा। इस पुराण में श्री रामचन्द्रजी व रावणका चरित्र वर्णित है । सक्षेप मे उसपर एक नजर डाल लेना हमारे लिये परमावश्यक है । अस्तु, इसमें लिखा है कि सम्राट् सगरचक्रवर्ती के समय में विजयार्धकी दक्षिण श्रेणिमें एक चक्रवाल नगरका राजा पूर्णवन था । विहाय लक नगर के राजा सहस्रनयनने सम्राट् सगरकी सहायता से इसे तलवारकी घाट उतार दिया । इसका पुत्र मेघवाहन भागकर भगवान अजितनाथजी के समवशरणमें पहुंचा । वहापर राक्षसदेवोके इन्द्र भीम और सुभीम उससे प्रसन्न हुये और उसे लवण समुद्रमेंके अनेक अन्तर द्वीपों में से एक राक्षस द्वीपका अविपति वना दिया । यह राक्षसद्वीप सातमौ योजन लम्भा और चौडा बताया गया है और इसके मध्य में त्रिकूटाचल पर्वत वतलाया है । यहा योजनका परिमाण फीयोजन चार कोश समझना उचित है । यह त्रिकूटाचल पर्वतं रत्नजटित था । इसी पर्वतके १ - पूर्वभाग १ पृ० १३४ ।