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भगवान पार्श्वनाथ |
ही मानी गई है और मन एक अलग पदार्थ माना गया है जिसका खास सम्बध आत्मासे है । उसको अन्ततः सूर्यरूप कहना कुछ गलत नहीं है, क्योकि सूर्य आत्माकी शुद्ध दशाका द्योतक है । स्वय ऋग्वेदमे उसे अमरपनेका स्वामी (अम्रितत्वप्येशानो १०९०,३ ) कहा गया है । इस तरह प्रजापति परमेष्ठिन्के नामसे जो सिद्धान्त ऋग्वेदमे दिये गये है वह जैनधर्मसे सादृश्यता रखते है तथापि पहले बताये हुए नामके भेदको दृष्टिमें रखते हुये यह कहना कुछ अत्युक्ति पूर्ण न होगा कि इन मंत्रों में वेद ऋषियोंने भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रतिपादित जैनधर्मका किञ्चित् विवेचन किया है । इसलिये भारत में प्रारभसे एक प्राकृत धर्म जो उपरान्त ब्राह्मण धर्म कहलाया केवल उसका ही अस्तित्व बतलाना ठीक नहीं है । इस ए१ अन्य श्रोतोंसे यह प्रमाणित है कि भारत में जैनधर्मका अस्तित्व वेदोंसे भी पहले का है ।
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