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धरणेन्द्र-पद्मावती कृतज्ञता-जापन ।
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प्रशंसा निम्न पद्यो' करते हैं:--- "धर्मानुराग रंगसे उमग भरी हो. सध्या समान लाल रग अग धरी हो। जिनसत शीलवत पै तुरत खड़ी हो, मनभावती दरसावती आनद बड़ी हो ॥५॥ चरणाविंदमें हैं नूपुरादि आभरण, कटिमें है सार मेखला प्रमोदकी करन । उरमें है सुमनमाल सुमनमालकी माला, पटरग अग सगसों सोहे है विशाला ॥११ करकंजचारुभूषनसों भूरि भरा है, भवि-वृदको आनन्दकद पूरि करा है। जुग भान कान कुंडलसों जोति धरा है, शिरशीसफूल फूलसों अतूल धरा है ॥१२ मुखचदको अमद देख चद हू थभा, छवि हेर हार होरहा रभाको अचमा । हग तीन सहित लाल तिलक भाल धरै है, विकसित मुखारविंद सौं आनद भरै है।"
श्वेतांबर जेनोंके शास्त्रोमें भी धरणेंद्र और पद्मावतीको भगवान् पार्श्वनाथके शासन देवता स्वीकार किया गया है। यद्यपि कहीर धरणेन्द्रका नाम वहां 'पार्श्व' लिखा मिलता है। परन्तु श्रीभावदेवसूरिने धरणेन्द्र और पाश्व शब्दोको समान रूपमें व्यवहृत किया है।
१-वृन्दावनविलास पृ० २२-२३ । श्री बृहत्पद्मावतीस्तोत्रमें इसका उल्लेख इन श्लोकोंमें हैविस्तीर्णे पद्मपीठे कमलदलश्रिते चित्तकामागगुप्ते । लातागी श्रीसमेते प्रहसितवदने नित्यहस्ते प्रशस्ते ॥ रक्त रक्तोत्पलागी प्रबिबहसि सदा वाग्भवेकामराजे । हसारूढे त्रिनेत्रे भगवति वरदे रक्ष मा देवि पद्मे ॥ १० ॥ जिह्वाग्रे नाशिकाते हदि मनशि दशा कर्णयो भिपद्म । स्कधे कठे ललाटे शिरसि च भुजयो वृष्ट पार्श्वप्रदेशे ॥ सर्वागोंपाग सुव्यापयतिशय भुवनं दिव्यरूप सुरूप ।
ध्यायति सर्वकाल प्रणवलयुत पार्श्वनाथेति शब्दे ॥ १२ ॥ २-लाइफ एण्ड स्टोरीज ऑफ पार्श्वनाथ, फुटनोट-पृ० ११८ और पृ. १६७ और हाटऑफ जैनिज्म पृ० ३१३ । ३-भावदेवसूरिकृत श्रीपार्श्वचरित सर्ग ७ श्लो० ८२७ ..और हेमचन्द्राचार्यका अभिधान चिन्तामणि ४३ । ४-श्रीपार्श्वचरित सर्ग ६ श्लोक १९०-१९४ यहा धरणेन्द्रका ही नाम लिखा है।