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धरणेन्द्र-पद्मावती कृतज्ञता-ज्ञापन। [१४७ पुत्रोंसे सताये जाकर बाहर निकले थे तो वहीं निकटके एक सहमवक्र नागने उनका सन्मान किया था तथापि वही अर्जुन वृक्षपरके पांच फणवाले नागपतिने उनको पाच वाण आदि देकर सम्मानित किया था। इस तरह यह नाग भी विद्याधरोके देशके थे और जिनेन्द्रभक्त प्रद्युम्नका जो इन्होने मान किया था, उससे उनकी जैनधर्मसे सहानुभूति प्रकट होती है । 'गरुड़ पंचमीव्रत कथा' में भी नागलोगोंका संवन्ध वर्णित है। उसमें मालव देशके चिच नामक ग्रामके नागगौड़की स्त्री कमलावतीके पूछनेपर एक मुनिराजने वहांकी नागवांवीमें श्री नेमिनाथ और पार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिमायें बतलाइ थीं। यद्यपि यहां नागवांवी एक सपकी वांवी बतलाई गई है। परन्तु पूर्व कथाकारोंके वर्णनक्रमको ध्यानमें रखते हुए इसका अर्थ नाग लोगोका निवास कहा जासक्ता है । अस्तु; इस कथासे भी नागलोगोंका जिनधर्मी होना और भगवान नेमिनाथ व पार्श्वनाथजीसे उनका विशेष संपर्क होना प्रकट होता है। श्री मल्लषेणाचायेके 'नागकुमार चरित'में भी नागलोगोका सम्यक्त्वी नागकुमारकी रक्षा करनेका उल्लेख है, यह हम पहले देख चुके हैं। आधुनिक विद्वान् भी इनको नागवंशी स्वीकार करते हैं । इसमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि और सब रानाओंने तो नागकुमारके साथ अपनी राजकुमारियों का विवाह कर दिया था, कितु पल्लववंशी रानाओंने नही किया था। उनके ऐसा न करनेका कारण यही कहा था कि स्वयं उनका विवाह नागकुमारियोसे हुआ था । अतः
१-उत्तरपुराण पृष्ठ ५४७-५४८ । २-जैनव्रतकथासग्रह पृष्ठ १४२१४४ । ३-नागकुमारचरित पृष्ठ १७