________________
[ १४५
धरणेन्द्र - पद्मावती कृतज्ञता ज्ञापन | था । सममुच दक्षिणमे और नागपुर के आसपास नागवंशके अधिपति अनेक थे । उनके विवाह संबंध शतवाहनोसे भी थे । (इन्डि० हिस्ट्रा ० का ० भाग ३ ८० ११८ - ९२०) मध्यप्रान्तके भोगवती आदिके नागराजाओकी पताकामे सर्पका चिन्ह था । (इपी ० इन्डिका १०/२५) काके उत्तर-पश्चिम भागमे भी नागोका वास था । इसी कारण लंकाका नाम 'नागद्वीप' भी पड़ा था । यहापर ईसासे पूर्व ६ठी शताब्दिसे ईसाकी तीसरी शताव्दि तक नागवंशका राज्य रहा था, किंतु लोगोंकी धारणा है कि ईसासे पूर्व छठी शताव्दिके भी पहलेसे वहां नागोका राज्य था । (Averent Jaffu PP 33 - 11 ) म बुद्ध जिससमय लंका गये थे, उस समय उनको वहां एक नागराजा ही मिले थे । तामिलके प्रसिद्ध काव्य 'शीलप्पत्यिकारम्' मे दक्षिण के नागराजाओकी राजधानी कावेरीपट्टन बतलाई गई है ।' जेन कथाग्रन्थोमे भी इस कावेरीपट्टनका बहुन उल्लेख हुआ है । इमतरह ऐतेहासिक रूपमें | नागलोगोका अस्तित्व प्राय समग्र भारतवर्ष मे ही मिलता है ।
C
जैनधर्मसे नागवश का घनिष्ट सम्वन्ध प्रारम्भ से ही प्रमाणित होता है | भगवान पार्श्वनाथ की इनमें विशेष मान्यता थी, यह हमारे उपरोक्त कथन से सिद्ध है । यदि स्वयं भगवान पार्श्वनाथजीका 1 सम्पर्क इम कुलसे रहा हो तो कोई आश्रर्य नहीं क्योकि शास्त्रोंमे इन भगवानको उग्रवशी और काश्यपगोत्री लिखा है । उधर नागलोकको विविध वंशो एक 'उरगस' नामक मिलता है जो उग्रका प्राकृत रूप होमक्ता है । हिन्दीमे उसका प्रयोग 'उरग' रूपनें
1
१ - इन्डियन हिस्य० का० भाग ३ ० ५२७
१०
·