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धरणेन्द्र-पद्मावती-कृतज्ञता-ज्ञापन। [१४३ कि यह नागलोग मनुष्य ही थे।
नागवंशी रानाओंका इतिहास अभी प्रायः अंधकारमें है; परन्तु उसपर अब प्रकाश पड़ने लगा है । अवतकके प्रकाशसे यह ज्ञात होता है कि इनका अस्तित्व महाभारत युद्धके पहलेसे यहां था। जैन पद्मपुगणके पूर्वोलिखित उद्धरणसे भी यही प्रकट है। सचमुच महाभारतके समय अनेक नागवशी राजा यहां विद्यमान थे। तक्षक नागद्वारा परीक्षितका काटा जाना और जन्मेजयका सर्पसत्रमें हजारों नागोंके होमनेके हिन्दूरूपक इसी बातके द्योतक है कि नागवंशी तक्षकके हाथसे परीक्षित मारा गया था और उसके पुत्र जन्मेजयने अपने पिताका वैर चुकानेके लिए हजारो नागोंको मार डाला । तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, मणिनाग आदि इस वंशके प्रसिद्ध राजा थे। विष्णुपुराणमें ९ नागवंशी राजाओका पद्मावती (पेहोआ, ग्वालियर राज्यमे), कांतिपुरी और मथुरामें राज्य करना लिखा है । वायु और ब्रह्मांडपुराण नागवंशी नव राजाओंका चंपापुरीमें और सातका मथुरामें होना बतलाते हैं। क्षत्री और ब्राह्मण लोगोंने इनके साथ विवाह संबंध भी किए थे। इनकी कई शाखायें थीं; जिनमें की एक टाक या टाक शाखाओका राज्य वि० सं० की १४ वीं और १५ वी शताब्दितक यमुनाके तटपर काष्ठा या काठा नगरमें था। मध्यप्रदेशके चक्रकोव्यमें वि० सं० की ११ वीं से १४ वीं और कवर्धाने १० वी से १४ वीं शताब्दितक नागवंशियोंका अधिकार रहा था। इनकी सिह शाखाका राज्य दक्षिणमें रहा था। निजामके येलबुर्ग स्थानमे इनका राज्य १०वींसे १३वीं शताब्दितक विद्यमान था। राजपूतानेमें भी नागलोगोंका