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भगवान पार्श्वनाथ । अधिकार रहा था।' उद्यान प्रान्त (पंजाब) में भी नागवंशियों का राज्य था। वहां एक अपलाल नामक नागरानाका अस्तित्व बतलाया गया है। काश्मीरके गना दुर्लभ (सन ६२५-६६१) भी नागवंगी थे। अहिच्छत्र (बरेली) में भी वुद्धके समय नागराजाओंका राज्य था। उसी समय वौद्ध गयामें भी एक नागराजाका अस्तित्व बतलाया गया है। रामगाम (मध्यप्रांत)में भी इन रानाओका राज्य होना एक समय प्रकट होता है। फाहियान और युनत्सांग, इन दोनों ही चीनी यात्रियोंने यहांपर नागराजाओंका होना लिखा है, जो बुडके स्तूपकी रक्षा करते थे। एनत्सांग लिखता है कि वे दिनमें मनुष्यरूपमें दिखाई पड़ते थे। इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि उस समय भी लोगोंमें इनके वस्तुतः नाग होनेका भ्रम घुसा हुआ था. यद्यपि वस्तुत यह नागलोग मनुप्य ही थे, जैसे कि ह्युनत्सांगके उक्त उल्लेख और जैन शास्त्रोंके कयनसे प्रकट है। लाके बौद्धोका विश्वास है कि गगाके मुहाने और लंकाके मध्यके एक देशमें नागलोगोंका राज्य था। दक्षिण भारतके मजे रेका स्थानमें भी नागोंका निवाम था। तामिल के प्राचीन शास्त्रकारोंने तामिलके निवासियोंको तीन भागोमें विभक्त किया है और उनमे नागलोग भी हैं | पद्धववशके प्राचीन राजाओंका विवाह सम्बन्ध नागकुमारियोंसे हुआ था । प्राचीन चोलराजाओंका भी इनसे संबंध था। तामिलदेशका एक भाग नागवगकी अपेक्षा नागनादु कहलाता
१-पाजपूताना इतिहास प्रथन माग प० २३०-२:२॥२-अन्न्धिन, ऐनशियन्ट जॉन इन्डिरा पृ० ९५। -पूर्व पुस्तक पृ० १०७ । ४-पूर्व पुस्तक ३० (१२। "-पूर्व० पृ. ४१४। :-पत्र. १८३। ७-पूर्व० पृ० ४८४ । ८-पूर्व० पृ० १३ । ९-युर्व० पृ. ६ |