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धरणेन्द्र - पद्मावती - कृतज्ञता ज्ञापन | इनका आसन राजहं बतलाया गया है ।' किन्तु कहीं २ इनको तीन फणवाले छत्र से मंडित कहा गया है, यथा:
'फन तीन सुमनलीन तेंर शीस बिराजै । जिनराज तहाँ ध्यान धरे आप विराजै ॥ फनिइदने फनिकी करी जिनंद छाया ।
उपसर्ग वर्ग मेटिके आनन्द वढाया ॥ जिनशासनी हंसनी पद्मासनी माता |
भुज चार फल चारुदे पद्मावती माता ॥' यहां हंसनीके साथ इनका उल्लेख पद्मासनी रूपमें भी किया हुआ है । अन्यत्र भी यही कहा गया है और साथ ही इनको पद्मवनमें नियमित बतलाया है यथा-
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'पद्म पद्मासनस्थे व्यपनयदुरित देवि देवेन्द्र वद्ये ॥ ६ ॥' 'मातर्पद्मनि पद्मरागरुचिरे पद्मप्रसूतानने ।
पद्म पद्मवनस्थिते परिलसत्पद्माक्ष पद्मालये ॥ पद्मामोदनि पद्मनाभिवरदे पद्मावती याहि मां । पद्मोलासन पद्मरागरुचिरे पद्मप्रसूनाचिते ॥ २७ ॥
१. पूर्व प्रमाण और करकडुचरितमे भी पद्मावती देवीको पाच फणवाला बतलाया है: यथा
" समच्चिविपृजिविज्झायइजाव । समागयदेवय पोमावयताम । समंथरलालसकोमल आणि कुणतियकाविभउन्वियभाउ ॥ विणिम्मियस्व समिद्धिखणेण सरीर इ रत्तिय सुद्धमणेण । करेहिं चउहि करतिगुल-सयोछयभिंग समुद्द मुणालु ॥ सकुडलकण्णफुरतक्वोल - सण्णडरकिंकिणि मेहलरोल । फणोफण पंचसिरेणधरंति-पसणियणिम्मल कविकरति ॥”
- सघि ७.
२. वृन्दावन विलास पृ० २१ । ३ जैन गुटका नं० ४४ आरा - बृहदू पद्मावतीस्तोत्र - पृ० २७-२८ ।