________________
८८ ]
भगवान पार्श्वनाथ |
1
सम्बन्धी क्रम किञ्चित् दर्शन हमें मिलने है, यह हम ऊपर कह चुके हैं। सचमुच वहा पहले यही कहा गया है कि यद्यपि स्वयं भगवान ऋषभदेव के समयमें ही मरीचि द्वारा पाखंड मतकी उत्पत्ति होगई थी परन्तु धर्मकी विच्छित्ति भगवान शीतलनाथ तक प्राय नहीं हुई थी । हां, इन शीतलनाथ तीर्थकरके अंतिम समय में आकर अवश्य ही जैनधर्मका नाम होगया था और भूतिशर्मा ब्राह्मणके पुत्र सुडगालयनने मिथ्यागात्रोकी रचनाकर पृथ्वी, सुवर्णका दान देना सर्व साधारणके लिए आवश्यक चतलाया था ।" उपरान्त श्रेयांसनाथ भगवान द्वारा जैनधर्मका उद्योत पुन होगया था परन्तु भगवान सुनिसुव्रतनायके तीर्थकालमे जाकर अहिमा धर्मके विरुद्ध पुनः ऊधम मचा था । राजा दनुके राजत्वकालमें पर्वन आदिने हिसाजनक यज्ञोंकी आदिष्कृति की थी । 'अर्ज' शव्दके अर्थ ' शालि वान्य' के स्थानपर इनने 'बकरा' मानकर पशुओका होमना वेढोक्त बतलाया था और फिर नरमेधतक रच दिया था । * परन्तु इसके पहले अरनाथ तीर्थंकर के समय में ब्राह्मण माधु स्त्री सहित रहने लगे थे, यह भी बतलाया गया है । अयोध्या के राजा सहस्रबाहु का शतुविद की स्त्री श्रीमतीसे उत्पन्न जमदग्नि द्वारा इस प्रथाका जन्म हुआ था। यहांपर इस वेदवाक्यका उल्लेख जैनगास्त्रमें किया गया है कि पुत्र विना मनुष्यकी गति नहीं होती है । (अपुत्रस्यगतिर्नास्तीत्यार्प किं न त्वया श्रुत) जमदग्निने अपने मामा पारत देशके राजाकी छोटी पुत्रीसे विवाह किया था, जिससे इनके दो पुत्र इन्द्रराम और खेतराम हुये ये । सहस्रबाहुने
१–उत्तरपुराण पृष्ठ १०० । २- पूर्व० पृष्ठ ३३९-३५१ ।