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२००] भगवान पार्श्वनाथ । होते बतलाया गया है, वह भी ऐतिहासिक सत्य है। इसतरह ब्राह्मणोंके बनारस अधिपति दिवोदासका वर्णन है, जिसका सम्बन्ध भगवान पार्श्वनाथसे प्रकट होता है। उससे भी भगवानका जन्मस्थान बनारस सिद्ध होता है और यह भी स्पष्ट होजाता है कि उस समय वह अवश्य ही ससारभरमें सर्वोत्तम नगर था कि ब्रह्माने उसे ही संसारभरके राज्यत्री राजधानी नियत की, तथापि यह भी प्रक्ट है कि वहांसे ब्राह्मणधर्मका प्रभुत्व हट गया था और जैनधर्मकी प्रधानता थी।
सचमुच ब्राह्मण कालमें उत्तरीय भारतके कुरु, पाञ्चाल, कौशल, शागी और विदेह ही विख्यात राज्य थे। इनमें से कुरु
और पाञ्चालोंकी तथा दूसरी ओर कौशल, जागी और विदेहोंनी सापसमें मित्रता थी। कुरु-पाञ्चालों और शेष तीनों राज्यों पारम्परिक सम्बन्ध कटुता लिए था। उपरान्त बौद्धकालमें काली बज्जियन संघमें सम्मिलित थी. यह बात हमें 'कल्पमृत्र'के क्यनसे विदित होती है । उसमें कहा गया है कि जिस रातको भगवान सहावीर निर्वाण लाभ कर सिड, बुद्ध मुक्त हुए उस रात्रिको कानी कौगलके अठारह संयुक्त राना, नौ लिच्छवि. और नौ नलिकोने अमावसके रोज दीपोत्सव मनाया था।
बौढोका सम्बन्ध भी बनारससे बहुत कुछ न्हा है। उनके शास्त्रोंमें भी इसका वर्णन व निलता है। स्वयं मा बुद्धने बौद्धधर्मका नींवारोपण यहींसे किया था। संयुद्ध होनेपर
१-बलिक एडमिनिस्ट्रेशन इन एननियन्ट इन्टिया पृ. .-." २-न्यन्त्र (S B. E Tol IXII.) पृ० २६६ ।