________________
४० ]
भगवान पार्श्वनाथ |
1
इस प्राचीन कथासे उस समयके भारतकी दशाका परिचय मिलता है | यहाके व्यापारी विशेष धनसम्पन्न और उद्यमी थे । वे दूर २ देशोंमे व्यापार करने जाया करते थे । तथापि इसके अतिरिक्त इस कथासे यह भी स्पष्ट है कि उस समय भी जैनसिद्धातोका प्रचार विशेष था । रात्रिभोजनका त्याग जनीके बच्चे २को होता है । इस कथामे भी इस नियमका महत्व प्रगट किया गया है । सचमुच जैनधर्म बौद्धधर्मके स्थापित होनेके बहुत पहलेसे भारतवर्ष में चला आरहा था; जैसे कि हम अगाडी देखेंगे । यद्यपि यह बात आज सर्वमान्य है ।
उक्त जैनकथाके कथन की पुष्टि अन्य श्रोतोसे भी होती है । बौद्धोंके यहां भी एक कथामे विदेहको व्यापारका केन्द्र बताया गया है । वहा श्रावस्ती से विदेहको व्यापार निमित्त जाने हुये वनके मध्य एक व्यापारीकी गाडीका पहिया टूट जानेका उल्लेख है । प्राच्यविद्या विशारद स्व ० डॉ० हीस डेविड्स अपनी स्वतंत्र खोज द्वारा इस ओर विशेष प्रकाश डाल चुके हैं और उम सनय व्यापारकी अभिवृद्धिका जिकर करते हुये वे व्यापार के मुख्य मार्गोको इस प्रकार बतलाते हैं
3
Amy
(१) एक मार्ग तो उत्तरसे दक्षिण-पश्चिम की ओरको थाः जो श्रावस्ती से बहुत करके महाराष्ट्रकी राजधानी प्रतिष्ठान ( पेंडत ) तक गया था। इसमें व्यापारके मुख्यनगर दक्षिणकी ओरसे माहिस्सति, उज्जैनी, गोनद्ध, विदिशा, कौशाम्बी और साकेत पड़ते थे ।
१- अ हिस्ट्री ऑफ इन्डिया (तृतीयावृत्ति) पृ० ३१ । २-दी न्मिइन बुद्धिम इन्डिया पृ० १०६ । ३ - बुद्धिस्ट इन्डिया पृ० १०३ ॥