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भगवान पार्श्वनाथ |
मानी हुई बात है कि जिस देशका व्यापार अभिवृद्धिपर होगा वह देश अवश्य ही सम्पत्तिशाली होता है । इसी अनुरूप भारतकी आर्थिक अवस्था भी उस समय बहुत ऊंचे दर्जेकी थी। आजकलकी तरह वह दरिद्र नहीं था ।
भगवान पार्श्वनाथ से कुछ पहले जो जैनशास्त्रोमे बताए गए अतिम चक्रवर्ती सम्राट् ब्रह्मदत्त होगए थे, उनकी विभृतिका जो वर्णन जैन शास्त्रोमे दिया गया है, उससे भी यहांकी समृद्धशाली दशाका परिचय मिलता है । चक्रवर्ती सम्राट्की सम्पत्ति जैनशास्त्रों में इस तरह बतलाई गई है - उनकी सेनामें चौरासी लाख मदोद्धत हाथी, अठारह करोड़ तीक्ष्णवेगके धारक घोडे, चौरासी लाख सुदर रथ, और चौरासी करोड पयादे लिखे गए हैं । उनके आधीन बत्तीस हजार देश और छ्यानवें करोड गाव आदि बताए गए हैं। बत्तीस हजार राजा चक्रवर्तीकी सेवा करते है । इसी तरह और भी अनेक प्रकारकी उनकी सपदा बताई गई है । यह सब ही सम्राट् ब्रह्मदत्तके यहा मौजूद थी । इससे उस समयके विशेष सपत्तिशाली भारतवर्ष के स्पष्ट दर्शन होते है ।
इस तरह की सुखसम्पन्न दिशामें यहाके निवासियोंके दैनिक जीवन भी बडे सुखसे व्यतीत होते थे । आनन्दके साथ वह पेट भरकर बेफिकरीसे अपने परलोक साधनकी 'धुनमे रहते थे, परन्तु far वित्र लोगोंक प्रावल्याने वे बहुधा उनको पृजकर अथवा और तरहसे किया पूर्ति करके अपने कर्तव्यकी इतिश्री समझ लेते थे । शेष जीवनभर वह मजेदार सासारिक रंगरलिया किया करते थे । यातक कि ब्राह्मण ऋषि एवं अन्य परिव्राजक साधु आदि स्त्री