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भगवान पार्श्वनाथ । तिक धर्म था जो बादमें हिन्दूधर्म या ब्राह्मण धर्मके नामसे ज्ञात हुआ । इस धर्ममें बहुत प्राचीन मनुप्योकी मानतायें. पित्रजनोंकी पूजा, क्रियाकाड, प्रचलित पौराणिक वाद आदि गर्मित थे । यह बिल्कुल ही प्रकृति (Nature) की पूनाका धर्म था । और जबतक मनुप्य चुपचाप प्राचीन रीतियोंको मानते हुए रहे तबतक इस वातकी क्रिप्तीको फिकर ही न हुई कि सैद्धान्तिक मन्तव्य किसके क्या हैं ? "' इसतरह इससे भी यह बात प्रकट है कि पहले यहां वृक्ष जल आदि प्राकृतिक वस्तुओं की पूजा भी प्रचलित थी। परन्तु तत्र यहां क्या केवल यही एक धर्म था, इसके लिए इस उक्त विद्वानके कथनको नजरमें रखते हुए हम अगाडी विवेचन करेंगे। यहांपर उपरोक्त जन कथाके शेष भागको देखकर हम उस समयके धार्मिक वातावरणके जो और दर्शन होने है, वह देख लेना उचित सगझते हैं।
उक्त जन कथामे अगाड़ी कहा गया है कि " वह श्रावक उस ब्राह्मणके साथ गगानदीके किनारे गया । भूख लगनेपर उस नदीके जलको मणिगगा नामका उत्तम तीर्थ समझकर स्नान किया और इसतरह तीर्थमूढताका काम किया। तदनतर जब वह ब्राह्मण खानेकी इच्छा करने लगा तब आवकने पहले खाकर उस बचे हुये उच्छिष्ट भोजनमे गगानदीका वही पानी मिलाकर उस ब्राह्मणको दिया और हित बतलाने के लिये कहा कि गगाका जल मिलजानेसे यह भोजन पवित्र है इसे खाओ। उसे देखकर वह ब्राह्मण कहने लगा कि तेरा उच्छिष्ट भोजन मे कसे खाऊ, तब उस श्रावकने
१-दी हिन्दी ऑफ प्री-बुद्धिस्टिक इन्टियन फिलासफी पृ० १६५
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