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६२] भगवान पार्श्वनाथ । प्राप्त हुई और उन दूसरी स्त्रियोंके उदाहरणमें टीकाकार कुल्लूकभट्टजीने 'अन्याश्च सत्यवत्यादयो' इत्यादि रूपसे सत्यवतीके नामका उल्लेख किया है। यह सत्यवती हिन्दू शास्त्रोके अनुसार एक धींवरकीकैवर्त्य अथवा अन्त्वनकी कन्या थी। इसकी कुमारावस्थामें पाराशर ऋपिने इमसे भोग किया और उससे व्यासजी उत्पन्न हुए जो कानीन कहलाते हैं। वादको यह भीष्मके पिता राजा शान्तनुसे व्याही गई और इस विवाहसे विचित्रवीर्य नामका पुत्र उत्पन्न हुआ जिसे राजगद्दी मिली और जिसका विवाह राजा काशीराजकी पुत्रियोंसे हुआ। विचित्रवीर्यके मरनेपर उसकी विधवा स्त्रियोंसे व्यासजीने अपनी माता सत्यवतीकी अनुमतिसे भोग किया और पाण्डु तथा धृतराष्ट्र नामके पुत्र पैदा किये जिनसे पाण्डवों आदिकी उत्पत्ति हुई। .. एक और नमूना 'ययातिराजाका उगना ब्राह्मण (शुक्राचार्य) की देवयानी' कन्यासे विवाहका भी है । यथा -
तेपा यानि पत्राना विजिल वसुधानिमा । देवयानिमुगना सुता भार्गमवाय सः ॥
महामा० हरि० अ० ३० वा । "इसी विवाहमे 'यदु' पुत्रका होना भी माना गया है, जिससे बटुवंश चली ।" इस तरह पर हिन्दु शास्त्रों में हीन जातियों और शुद्रा स्त्रियों तकमे विवाह संबन्ध करनेके अनेकों उदाहरण मिलते. हैं; जो हमारे उपरोक्त कयनको स्पष्ट कर देते हैं। साथ ही जनशास्त्रोंने भी विवाह क्षेत्रकी विगालता बतानेवाले अनेकों उदाहरण मिलते हैं। यहा हम उनमें से केवल उनका ही उल्लेख करेंगे जो भग
१ विधान प्राम।
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