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उस समयकी सुदशा ।
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दृष्टिसे जो यह हालत राज्यकीय क्षेत्र मे मिलती है, वह अन्यथा भी सिद्ध है । प्राचीनतम भारतीय मान्यता इस पक्ष मे है कि पहले एकव्यक्तिको जनता राजाके रूपमें चुन लेती थी और वह जनता के हित के लिये राज्य करता था । हिन्दुओ के महाभारतमे गना वेण और टयुकी कथासे यही प्रकट होता है ।" स्वयं ऋग्वेद मे 'समिति' और 'परिषद' शब्दोका उल्लेख मिलता है, जिसमें स्पष्ट है कि प्रजासत्तात्मक राज्यकी नीव वैदिककालमें ही पड़ चुकी थी ।' यद्यि मानना पड़ता है कि उस समयकी प्रजा स्वाधीन राजाओंके ही आधीन थी | जाहिरा ऋग्वेद में ऐसा कोई उल्लेख स्पष्ट रीतिसे नहीं है कि जिससे किसी अन्य प्रकारकी राज्य व्यवस्था अस्तित्त्व प्रमाणित होसके । ऋग्वेद में अनेक स्थलों पर ' राजन् ' रूपमे एक नृपका उल्लेख मिलता है और यह राज्य प्रणाली अवश्य वशपरम्परामें क्रमशः चली आरही थी । राजा होना तब राजाओ का मौरूसी हक था, किन्तु वह पूर्ण स्वाधीन भी नहीं थे कि मनमाने अत्याचार कर सके, क्योकि ऐसा करनेमे उनके मार्ग समिति या सभा सदस्य आड़े आते थे । इस कारण यह मानना ही पडताहै कि प्रजासत्तात्मक राज्यके वीज भारतमें ऋग्वेद के जमाने से ही वो दिये गये थे । जैन शास्त्र भी सर्व प्रथम राजाओका साधारण जनतामेसे चुना जाना ही बतलाते हैं । अतएव इनमे कोई आश्चर्य नहीं, यदि भगवान पार्श्वनाथजी के समयमे भी दोनो -रहके राज्योंका अस्तित्त्व किसी न किसी रूप में मौजूद हो ।
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१. महाभारत शातिपर्व ६०१ ९४ । २. समक्षत्री ट्राइव्स ऑफ एन्शियेनृ इडिया पृ० ९९ | १ कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया भाग १ पृ० ९४ । ४. आदिपुराण अ० १६।२४१-२७५ ।