________________
४२ ]
भगवान पार्श्वनाथ |
बतलाया है और वामनका उल्लेख वेदोंमे है । इस दृष्टिसे भगवान ऋषभदेवका अस्तित्व वेदोके पहलेका सिद्ध होता है । इन्हीं ऋषभदेव द्वारा इस युगमे पहले २ जैनधर्मका प्रचार हुआ था। अतएव जैनधर्मका प्रारम्भ भारतके एक गहरे इतिहासातीत कालमे होता है और इस अपेक्षा दक्षिण भारतका परिचय भी जैन शास्त्रोमें तबहीसे कराया गया है ।
भगवान् नेमिनाथनीके तीर्थमे हुये कामदेव नागकुमारकी कथामे भी हमको दक्षिण भारतका पता चलता है । यह उल्लेख भगवान् पार्श्वनाथ से भी पहलेका है | वहां कहा गया है कि पांडुदेशमे दक्षिणमथुराके राजा मेघवाहन रानी जयलक्ष्मीकी पुत्री श्रीमतीने प्रतिज्ञा की है कि जो कोई मुझे नृत्य करनेमे मृदंग वजाकर प्रसन्न करेगा, वही मेरा पति होगा । श्रीमतीकी प्रतिज्ञा सुनकर नागकुमारने दक्षिणमथुराको प्रस्थान किया था । मथुरा में पहुंचकर नृत्य समयमें श्रीमतीको मृदंग बजाकर प्रसन्न किया और अन्तमे उसके साथ विवाह करके वे सुखसे वही रहने लगे थे । यहासे नागकुमार समुद्रके मध्य अवस्थित तोपावलि द्वीपमें गए थे और वहांसे कांचीपुर नगरमें पहुंचकर वहाके राजा श्रीवर्माकी कन्यासे पाणिग्रहण किया था । काचीपुरसे कलिगदेशके दंतपुर नगरमें पहुंचे और फिर वे ऊड देशको गए थे । इस तरह वह दक्षिण भारत देशों में परिचित रीतिसे विचर रहे थे, यद्यपि वे स्वयं चम्पानगरके निवासी थे ।
१
इसी प्रकार 'चारुदत्त' की कथासे भी उस समयके भारतके १ - पुण्याश्रव कथाकोप पृ० १७५ | २ - पूर्व पृ० १७७