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भगवान पार्श्वनाथ |
मरुभूति ब्राह्मण पशुकी योनिमें आन पडा ।
राजर्षि मार्मिक उपदेशने हाथी के हृदयको पलट दिया । पशु पर्यायके दुखोंसे छूटने के लिए उसने सम्यग्दर्शन पूर्वक अणुव्रतोंको धारण कर लिया । धर्म भावना उसके हृदय में जागृत हो गई । राजर्षि तो अपने मार्ग गए और वह हस्ती धर्मध्यान में दिन विताने लगा। एक पशुके ऐसे धर्मकार्यपर अवश्य हो जीको सहसा विश्वास नहीं होता; किन्तु इममे अचरज करने की कोई बात नहीं है । पशुओं में भी बुद्धि होती है । वह स्वभावतः आवश्यक्ताके अनुसार यथोचित मात्रा में प्रगट होती है । उनके प्रति यदि प्रेमका व्यवहार किया जाय और उनकी पशुताको दूर करके उनकी बुद्धिको जागृत कर दिया जाय, तो वह अवश्य ऐसेर कार्य करने लगेंगे कि जिनको देखकर आश्चर्य होगा । आज भी ऐसे २ शिक्षित बैल और बकरे देखे गए हैं कि जो अपने खुरोसे गुणा करके खास अदमियोंके जेत्रोंमें रक्खे हुए रुपयोंकी संख्या बता देते है और जिस किसीने कोई चीज चुराई हो तो उसके पास जाकर खडे होजाते है । सरकसों के खेलोंको सब कोई जानता है, साधारणत कुत्तोंकी स्वामिभक्ति, किसी चीज का पता लगानेकी बुद्धि और सिखाने पर मनुष्यों की महायता करनेके प्रयत्न प्रतिदिन देखे जाते है। ये ऐसे उदाहरण हैं जो हमे पशुओं द्वारा उस मनोवृत्तिको प्राप्त करनेकी बातपर विश्वाम करनेके लिए बाव्य करते हैं, जिससे हाथी आदि पंचेन्द्रि सेनी जीव धर्माराधन करनेकी योग्यता पा लेते हैं । अस्तु,
हाथी विविध रीतिले धर्मश अभ्यास करने लगा । त्रस जीवोंजी वह नृल कर भी विराधना नहीं करता था । समताभावको