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भगवान पार्श्वनाथ सुन्दर सुहावना समय था । कामीजनोके लिये मानो अनङ्गराजने केलिके लिए साक्षात् नन्दनवन ही इस भूतलपर रच दिया था। परन्तु धर्मात्मा सज्जन इस समय भी पुण्योपार्जन करना नहीं भूले थे। नंदीश्वर व्रतका महोत्सव बड़े उत्साहसे इन दिनो किया जाता है।
कौगलदेशके अयोध्या सदृश उत्तम नगरमें इक्ष्वाक्वशी महाराज वन्त्रवाह राज्याधिकारी थे। प्रभाकरी नामकी इनके शीलगुणभरी रानी थी। दोनों ही राजपुरुष जैनधर्मके दृढ श्रद्धानी थे। मरुभूतिका जीव अहिमद्र ग्रैवेविकसे चयकर इन्हीं राजदम्पतिके यहा सर्वसुखकारी आनन्दकुमार नामक राजकुमार हुआ था। युवा होनेपर इस सुन्दर रानकुमारका अनेक राजकन्याओंके साथ विवाह हुमा था, और फिर यह अपने पिताके पदको प्राप्त हुआ था !
जेन शास्त्रोंमें राजाओंके आठ भेद बतलाये हैं; अर्थात् पहले जमानेमे आठ प्रकारके राजा होते थे, यह जैन शास्त्रोंके वर्णनसे प्रकट है। उनमें बतलाया है कि जो कोटिग्रामका अधिपति होता है, वह राजा कहलाता है। पांचसौ राना जिसको गीश नमावें वह अधिराजा बतलाया गया है । तथापि एक हजार राजा जिसकी आनमाने वह राजा महाराजा कहलाता है । दो हजार नृप जिसके आधीन हों उसे अर्घ मण्डलीक समझना चाहिये और चार हजार राना जिमकी शरण आ वह राजा मडलीक कहलाता है । आठ हजार भृप जिसकी आजाको गिर घरते हों, वह नृप महामंडलीक माना जाता है। मोलह हजार गनाओं को अपने आधीन रखनेवाला गना अर्धचक्री बतलाया गया है और बत्तीस हजार रामा जिसका लोहा मानते हों वह चक्रवर्ती राना कहलाता है। इनमेंसे महामंड