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१४] भगवान पार्श्वनाथ । . किन्तु पाठकगण, शायद आप विस्मयमे होगे कि इन विश्वभूति, मरुभूति, और कमठका सम्बन्ध भगवान पार्श्वनाथसे क्या ? भगवान पार्श्वनाथ तो जैनधर्ममे माने गए चौवीस तीर्थकरोंमेंसे तेईसवें तीर्थंकर थे । उनका इन लोगोंसे क्या सरोकार ? किन्तु पाठकगण, धैर्य रखिये | जरा ध्यान दीजिये, जितने भी भारतीय दर्शन एवं यूनान आदि देशोके जो प्राचीन धर्म थे, उनमे परलोक
और संसार परिभ्रमण अर्थात् आवागमन सिद्धान्त स्वीकार किया हुआ मिलता हैं । जैनधर्ममें भी इन सिद्धान्तोको स्वीकार किया गया है। इसी अनुरूप वह प्रत्येक आत्माको संसारमे अनादिकालसे चक्कर लगाते और अपने कर्मोके अनुसार दुःख सुख भुगतते मानता है । जैन पुराणोमें जिन महापुरुषोंके दिव्य चरित्र वर्णित किये गये हैं; वहा उनके पहलेके भवोंका भी वर्णन दिया हुआ है। इसी तरह जैन पुराणों में भगवान पार्श्वनाथके पहलेके नौ भवोंका वर्णन बतलाया गया है । इन नौ भवोंका प्रारंभ मरुभूतिके जीवनसे होता है । मरुभूतिका जीव ही उन्नति करते २ दसवें भवमें भगवान पार्श्वनाथ होनाता है । इस कारण यहांपर मरुभूति और कमठके वर्णनमें हम भगवान पार्श्वनाथके प्रथम मव वर्णनका दिग्दशन करते है । इन दोनों भाइयोंका सवन्ध अन्त तक एक दूसरेसे इसी तरहका रहेगा । यह परिणामोंकी विचित्रता और कर्मोके अचूक फलका दृश्य है !