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जगत् निदोर्ष दिखे तो वह वीतराग होने की निशानी है।
कोई अपमान करे, गालियाँ दे फिर भी स्पर्श न करे तो आप उतने वीतराग हो गए, भगवान हो गए और यदि पूरा जगत् जीत गए तो पूर्ण भगवान! फिर किसी के भी साथ मतभेद नहीं रहेगा!
शरीर को खुला छोड़ देना यानी क्या? लटू फेंकने के बाद उस पर फिर से डोरी नहीं लपेटना। फिर तो उसे देखते ही रहना है कि वह कैसे घूम रहा है!
अब अगर पुद्गल को देखता रहे तो वह शुद्ध हो जाएगा और मुक्त हो जाओगे।
सम्यक् दर्शन और आत्म साक्षात्कार एक ही चीज़ है। सम्यक् दर्शन वीतरागता की शुरुआत है।
क्या प्रतिष्ठित आत्मा वीतराग हो सकता है ? नहीं। उसमें वीतरागता का पावर आता है लेकिन वीतरागता का गुण नहीं आता।
दादाश्री की आज्ञा में रहने का पुरुषार्थ ही वीतराग बनाएगा!
राम और महावीर वीतराग हुए, तो वे किसी क्रिया के आधार पर नहीं लेकिन ज्ञान के आधार पर हुए! ज्ञान ज्ञानी से मिला हुआ होना चाहिए!
वीतराग दशा में किस प्रकार से रह सकते हैं? किसी के प्रति क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं करना, वह वीतरागता। अगर वैसा (कषाय) हो जाए तो वीतरागता चूक गए। फिर से साधना पड़ेगा। ऐसे करते-करते स्थिर हो पाएँगे। जब छोटा बच्चा चलना सीखता है तब उसकी स्थिति कैसी होती है?
वीतराग हो जाए तो भगवान बन जाए। अंदर तो परमात्मा ही हैं लेकिन फिर पैकिंग भी भगवान बन गई, ऐसा कहा जाएगा!
कोई भी वैसा बन सकता है! वह पुद्गल की अंतिम दशा है।
यह ज्ञान होते ही दादाश्री में जगत् कल्याण की भावना जागी और 'व्यवस्थित' ने उन्हें निमित्त बनाया।
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