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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका अनेक राजाओंकी सभाओंमें जा-जाकर इतर विद्वान्वादियोंसे शास्त्रार्थ किये थे और उनमें विजय तथा यश दोनों प्राप्त किये थे । ये वादी होनेके साथ ताकिक, कवि, समालोचक और जैनधर्मके प्रभावशाली प्रचारक भी थे। इन्होंने गेरुसोप्पे, कोपण, श्रवणबेल्गोल आदि स्थानों में अनेक धार्मिक कार्य किये हैं। इनके देवेन्द्रकीति, वर्द्धमानमनीन्द्र, अकलङ्क, विद्यानन्दमुनीश्वर आदि अनेक शिष्य हुए हैं, और इन सभी गुरु-शिष्योंने विजयनगरके राजाओंको खूब प्रभावित किया है तथा जैनधर्मकी उनमें अतिशय प्रभावना की है। श्री० पं० के० भुजबलीजी शास्त्रीके उल्लेखानुसार स्वर्गीय आर० नरसिंहाचार्यका अनुमान है कि ये विद्यानन्द भल्लातकीपुर अर्थात् गेरुसोप्पेके रहनेवाले थे और इन्होंने कन्नडभाषामें 'काव्यसार'के अतिरिक्त एक और ग्रन्थ रचा था। शास्त्रीजीने इनके बारेमें यह भी लिखा है कि 'गेरुसोप्पेमें इन ( विद्यानन्द ) का एक-छत्र आधिपत्य था।' उपर्युक्त शिलालेखमें इन्हीं विद्यानन्दको 'बुधेशभवनव्याख्यान' का कर्ता बतलाया है।
। दूसरे विद्यानन्द वे हैं जिनका उल्लेख उपयुक्त हम्बच्चके शिलालेख और 'दशभक्त्यादिमहाशास्त्र' दोनोंमें हुआ है और जिन्हें उक्त विद्यानन्दका ही शिष्य बतलाया गया है । आश्चर्य नहीं, ये वही विद्यानन्द हों जिन्हें श्रुतसागरसूरि (वि० सं० १६वीं शती )ने अपने प्रायः सभी ग्रन्थोंमें गुरुरूपसे स्मरण किया है और उन्हें देवेन्द्रकीर्तिका शिष्य बतलाया है। परन्तु इसमें दो बाधाएँ आती हैं। एक तो यह कि श्रुतसागरसरिके गुरु विद्यानन्दिका भट्टारक-पट्ट गुजरातमें ही किसी स्थान (सम्भवतः सूरत)में बतलाया जाता है जबकि इन दूसरे विद्यानन्दका अस्तित्व १. प्रशस्तिसं. पृ. १२८ । २. वही, पृष्ठ १४४ । ३. 'अनेकान्त' वर्ष १, किरण २, पृ. ७१ । ४. 'विद्यानन्दायतनयो भाति शास्त्रधुरन्धरः।
वादिराजशिरोरत्नं विद्यानन्दमुनीश्वरः ॥'-प्रशस्तिसं. पृ. १२७ । ५. 'सूरिदेवेन्द्र कीत्तिविबुधजननुतस्तस्य पट्टाब्धिचन्द्रो,
रुन्द्रो विद्यादिनन्दी गुरुरमलतया भूरिभव्याब्जभानुः । तत्पादाम्भोजभृगः कमलदललसल्लोचनश्चन्द्रवक्रः, कर्ताऽमुष्य व्रतस्य श्रुतसमुपपदः सागरः शं क्रियाद्वः ॥ ४७ ॥'
-अनन्तव्रतकथा ।
६. देखिए, 'जन साहित्य और इतिहास', पृष्ठ ४०६ ।
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