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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका में ही नहीं, समग्न भारतीय दार्शनिक साहित्यमें भी आप्तविषयपर लिखा गया अनुपम आद्य परीक्षाग्रन्थ है। यद्यपि ईसाकी दूसरी, तीसरी शतीके महान् तार्किक स्वामी समन्तभद्र ने इससे पूर्व 'आप्त' पर आप्तमीमांसा रची है और जिसे ही आदर्श मानकर आ० विद्यानन्दने प्रस्तुत आप्तपरीक्षा लिखी है, पर आप्तविषयक परोक्षान्त ( आप्त-परीक्षा ) ग्रन्थ उन्होंने सर्वप्रथम रचा मालूम होता है और यह भी ज्ञात होता है कि उनके परोक्षान्त ग्रन्थोंमें आप्तपरीक्षा सबसे पहली रचना है ।
२. आचार्य विद्यानन्द अब हम ग्रन्थकार तार्किकचूडामणि आचार्य विद्यानन्द स्वामोका अपने पाठकोंके लिये परिचय कराते हैं। यद्यपि उनका परिचय कराना अत्यन्त कठिन कार्य है, क्योंकि उसके लिये जिस विपुल सामग्रीकी जरूरत है वह नहीं-के-बराबर है। उनकी न कोई गुर्वावली प्राप्त है और न उनके अथवा उत्तरवर्ती दूसरे विद्वान् द्वारा लिखा गया उनका कोई जीवनवृत्तान्त उपलब्ध है। उनके माता-पिता कौन थे ? वे किस कूल में पैदा हुए थे? उनके कौन गुरु थे? उन्होंने कब और किससे मुनिदीक्षा ग्रहण को थी ? आदि बातोंका ज्ञान करनेके लिये हमारे पास कोई साधन नहीं है। फिर भी विद्यानन्द और उनके ग्रन्थवाक्योंका उल्लेख करनेवाले उत्तरवती ग्रन्थकारोके समुल्लेखोसे, विद्यानन्दके स्वयंके ग्रन्थों के अन्त:१. विविध परीक्षाओं के संग्रहरूप तत्त्वसंग्रहमें बौद्ध विद्वान् शान्तरक्षित ( ई०
७४०-८४० ) ने भी, जो विद्यानन्द (ई० ७७५-८४० ) के समकालीन है, ईश्वरपरीक्षा, पुरुषपरीक्षा जैसे प्रकरण लिखे हैं, परन्तु आप्तपरीक्षा नामका प्रकरण उनने भी नहीं लिखा। युक्त्यनुशासन और प्रमाणपरीक्षामें आप्तपरीक्षाका उल्लेख है और इसलिये आप्तपरीक्षा इनसे पहले रची गई है । तथा पत्रपरीक्षा और सत्यशासनपरीक्षाके सूक्ष्म अध्ययनसे मालूम होता है कि ये दोनों परोक्षाग्रन्थ भी आप्तपरीक्षाके बाद रचे गये हैं। इस सम्बन्धमें आगे
"विद्यानन्दकी रचनाएँ” उपशीर्षकके नीचे विशेष विचार किया जावेगा। ३. राजावलीकथे' में, जो शकसं० १७६१ (वि० सं० १८९६ और सन्
१८३९ )में देवचन्द्रद्वारा रचा गया एक कनडी कथा-ग्रन्थ है, विद्यानन्दके सम्बन्ध में एक कथा पायी जाती है। परन्तु इस कथाका ग्रन्थकार विद्यानन्दके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है ।
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