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तीसरा अध्याय
अपभ्रश और हिन्दी भारतीय आर्य भाषाओं के विकास में मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा काल के अनन्तर वर्तमान काल की देश-भाषाओं का काल आता है। डा० सुनीति कुमार ने इसको New Indo Aryan Period कहा है।' इस काल को आधुनिक आर्यभारतीय आर्यभाषा काल कह सकते हैं। इस काल में भारत की वर्तमान प्रान्तीय भाषाओं की गणना की गई है।
वर्तमान प्रान्तीय आर्यभाषाओं का विकास अपभ्रश से हुआ । शौरसेनी अपभ्रंश से ब्रजभाषा, खड़ी बोली, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती और पहाड़ी भाषाओं का सम्बन्ध है। इनमें से गुजराती और राजस्थानी का सम्बन्ध विशेषतया शौरसेनी के नागर अपभ्रश रूप से माना जाता है। मागध अपभ्रंश से भोजपुरी, उड़िया, बंगाली, आसामी, मैथिली, मगही का विकास हुआ और अर्ध-मागधी से पूर्वी हिन्दी -अवधी आदि का। महाराष्ट्री से मराठी का सम्बन्ध जोड़ा जाता था किन्तु आजकल विद्वान् इसमें सन्देह करने लगे हैं और इन दोनों में परस्पर सम्बन्ध नहीं मानते । सिन्धी का वाचड अपभ्रश से सम्बन्ध कहा गया है । पंजाबी, शौरसेनी अपभ्रश से प्रभावित समझी जाती है।
इन भिन्न-भिन्न भाषाओं का विकास, तत्कालीन अपभ्रंश के साहित्यिक रूप धारण कर लेने पर, तत्कालीन प्रचलित सर्वसाधारण की बोलियों से हुआ । इन का प्रारम्भ काल १००० ईस्वी माना गया है । इस काल के बाद १३ वी १४ वीं शताब्दी तक अपभ्रंश के ग्रंथों की रचना होती रही। इन प्रान्तीय भाषाओं के विकास
१. डा० सुनीति कुमार चैटर्जी - इंडो आर्यन एंड हिन्दी, पृष्ठ ९७ २. डा० धीरेन्द्र वर्मा-हिन्दी भाषा का इतिहास, हिन्दुस्तानी एकेडेमी,
प्रयाग, १९४०, भूमिका, पृष्ठ ४८ ३. स्टेन कोनो-महाराष्ट्री एण्ड मराठी, इंडियन एंटिक्वेरी जिल्द ३२,
१९०३, पृ० १८०-१६२ ४. वही, जिल्द ३०, १६०१, पृ० ५५३ और जर्नल आफ दि डिपार्टमेंट प्राफ
लैटर्स, कलकत्ता, जिल्द २३, १६३३ ।