________________
साहित्य-परिचय और समालोचन
इस स्तम्भमें समालोचनार्थ पाये नये ग्रन्थादि साहित्यका परिचय और समालोचन किया जाता है। समालोचनाके लिये प्रत्येक ग्रन्थादिकी दो-दो प्रतियाँ पानी जरूरी है।
-१० सम्पादक] १. मोक्षमागंप्रकाश-लेखक, आचार्यकल्प प्रकाशक भारतीयज्ञानपीठ काशी, पृष्ठ संख्या ३५४ पं० टोडरमलजी । सम्पादक पं० लालबहादर शास्त्री। मूल्य सजिल्द प्रतिका तेरह रुपया। प्रकाशक, भारतवर्षीय दि० जैन संघ, चौरामी- प्रस्तुत ग्रन्थका विषय उसके नामसे स्पष्ट है। मथुरा। पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर ४२८ । नूल्य, इसमे जैन-मठ, जैनसिद्धान्तभवन, सिद्धान्तवसदि मजिल्द प्रतिका आठ रुपया।
आदि शास्त्रभंडार मूडबिद्री, जैनमठ कारकल और पुस्तुत ग्रन्थ पंडितप्रवर टोडरमलजीके मोक्षमार्ग- आदिनाथ ग्रन्थभण्डार अलिपूर आदि स्थानोंके भप्रकाशका हूँ'ढारी भाषासे खड़ी भाषामें अनूदित एडारोंमें स्थित ताडपत्रीय ग्रन्थोंकी एक सूची है। उक्त संस्करण है। इस मंस्करणमें भापापरिवर्तनके साथ सूचीका संकलन भारतीयज्ञानपीठ काशीकी कन्नड विषयको स्पष्ट करनेके लिये अनेक ग्रन्थोंके आधारसे शाखाके द्वारा हुआ है। दि० जैन समाजमें विविध टिप्पण भी फुटनोटमें दिये गये हैं जिनसे जैनेतरग्रन्थ- प्रान्तोंके समस्त शास्त्र-भण्डारोंमें स्थित ग्रंथोंकी एक कागेकी मान्यताओंका भली-भांति परिचय मिल जाता मुकम्मल सूचीकी बहुत आवश्यकता है, उसका है। और ग्रन्थगत विशेष कथनोंको स्पष्ट करनेके लिये अभाव पद-पदपर खटकता है, जबकि श्वेताम्बपरिशिष्ट भी लगाये गये हैं। इमसे स्थलोंका अच्छा रीय समाजके शास्त्र भण्डारोंकी कई विशाल-सूचियां बोध होजाता है।
प्रकाशित हो चुकी है। प्रस्तुत सूचीके प्रकाशनसे ग्रन्थके आदिमें ५० पृष्ठकी महत्वकी प्रस्तावना
उसकी आंशिक पूर्ति हो जाती है। खेद है कि हमें है जिसमें प्रन्थकर्ता पं० टोडरमलजीके जीवन-इनिवृत्त
अभी तक भी इस बातका पता नहीं है कि हमारे पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है और उनकी कृति
पास कितनी शास्त्र-सम्पत्ति है। अस्तु, भारतीय योंका सामान्य परिचय भी दिया गया है। पंडि
ज्ञानपीठ काशीद्वारा किया गया यह प्रयत्न प्रशंसतजीका निश्चित जन्म-मंवन अभी और वि
नीय है। आशा है ज्ञानपीठ इस दिशामें और भी चारणीय है।
प्रयत्नशील होगी।
इम संस्करणमें कितनी ही अशुद्धियाँ रह गई है। इस संस्करणमें कुछ अशुद्धियाँ रह गई है जो
प्रस्तावके पृष्ठ २६ पर अप्रकाशित ग्रंथोंकी जो तालिका खटकने योग्य है फिर भी सम्पादकजीने इस संस्करणके
दी गई है उसमें ५५ नम्बरका ग्रन्थ प्रद्य म्रचरित पीछे जो परिश्रम किया है वह सराहनीय है। संघने
है जो महाकवि महासेनकी अनुपम कृतिरूपसे प्रमिद्ध इम संस्करणको प्रकाशितकर खड़ी भाषा-प्रेमी
है। वह अपने मूलरूपमें सं०१९७३ में माणिकपाठकोंका एक बड़ा हित किया है इसके लिये वह
चन्द दिगम्बर जैन-ग्रन्थमाला, बम्बईद्वारा प्रकाशित अवश्य धन्यवादाह है। सफाई-छपाई अच्छी है। स्वा
हो चुका है जिसका नं०८ है। अतः उसे अप्रकाशित ध्याय प्रेमियोंको इसे मंगाकर अवश्य पढ़ना चाहिए। ग्रन्थोंकी तालिकामें नहीं रखना चाहिये।
२. कन्नड-प्रान्तीय ताडपत्रीय ग्रन्थ-सूची--- सूचीके १२६ वें पृष्ठपर मूडबिद्रीके जैन-मठके मम्पादक पं० के. भुजबली शास्त्री, मूडबिद्री, ताडपत्रीय ग्रन्थोंकी सूची देते हुए ११५ वें नं० पर