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आनन्द प्रवचन : भाग ८
हो जाता है, न ही धर्म शिरोमणि भगवान् रहते हैं; क्योंकि दोनों का एक साथ रह सकना कठिन है। काम का जोर प्रबल होता है, तब वह धर्म भावना या भगवत् प्रीति को दूर करके भगा देता है । सन्त कबीर ने इसी बात का समर्थन किया है
"जहाँ काम. तहाँ राम नहीं, जहाँ राम नहीं काम ।
दोऊ कबहुँ ना रहे, राम-काम इक ठाम ॥" इसके सबूत के रूप में हम गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन-प्रसंग प्रस्तुत करते हैं । गोस्वामी तुलसीदासजी विवाह होने के पश्चात् अपनी स्त्री में इतने अनुरक्त हो गए थे कि वे अपनी पत्नी रत्नावली का एक घड़ी का विछोह भी सह नहीं सकते थे। उनके मन में राम (भगवान्) के बदले काम बसा हुआ था। किन्तु एक दिन रत्नावली का भाई पीहर से बहुत जरूरी कार्यवश उसे लेने आ गया था। तुलसीदासजी किसी कार्यवश बाहर गये हुए थे। रत्नावली यह मौका देखकर भाई के साथ अपने पीहर पहुँच गई। जब तुलसीदासजी घर आए और पत्नी को न देखा तो पड़ौसियों से पूछने पर पता चला कि वह अपने पीहर चली गई है। तुलसीदास जी मन मसोस कर रह गए । उनके लिए पत्नी का वियोग असह्य हो उठा। रात अंधेरी थी। चौमासे के कारण नदियों में पानी उफन रहा था। फिर भी कामाप्रेरित तुलसीदास जी एकदम उठे और अपने ससुराल की ओर चल दिए । नदी में नौका नहीं मिली तो एक मुर्दे की ठठरी पर बैठकर नदी पार की। ससुराल के गाँव में पहुँचे । ज्यों ही ससुराल के घर के आगे पहुँचे, दरवाजा बन्द था। आधी रात को कौन खोलता ? अतः एक साँप, जो रस्सी की तरह लटकता मालूम हो रहा था, उसी को पकड़ कर उसी के सहारे दीवार लांघ कर घर में कूदे। आवाज होते ही उनकी पत्नी जाग गई। उसने दीपक लेकर उसके प्रकाश में देखा तो तुलसीदासजी ! रत्नावली ने उपालम्भ देते हुए तुलसीदासजी को फटकारा
जैसी प्रीत हराम में, वैसी हर में होय ।
चला जाय बैकुण्ठ में, पल्ला न पकड़े कोय ॥ ____सचमुच तुलसीदासजी अपनी पत्नी की प्रेरणा से कामप्रेरित मोह निद्रा छोड़ कर जाग गए और उसीदिन से काम से प्रीति करना छोड़ कर राम से प्रीति करने में लग गए। फिर तो वे प्रत्येक स्त्री में नयनाभिराम श्रीराम व सीता की मूर्ति के दर्शन करते थे । जब उनमें राम आ गया तो काम कैसे खड़ा रह सकता था ? -
___ इसीलिए दशवकालिक नियुक्ति में बताया है कि काम को काम क्यों कहा जाता है ?
विसयसुहेसु पसत्तं अबुहजणं कामरागपडिबद्ध।
उक्कामयंति जीवं धम्माओ, तेण ते कामा ॥ विषय सुखों में आसक्त, कामराग में लिपटे हुए अज्ञानी जीव को शब्दादिविषय धर्म से उत्क्रमण करा (दूर हटा) देते हैं, इसीलिए इन्हें काम कहा जाता है।
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