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आनन्द प्रवचन : भाग ८
शास्त्रकारों ने तो बारम्बार साधकों को माया-सेवन के दुष्परिणाम बताकर इससे दूर रहने के लिए सावधान किया है, परन्तु इस वेष में माया आसानी से चल जाने के कारण धुर्त लोग प्रायः साधु सन्यासी का वेष धारण कर लेते हैं । माया में प्रवीण : फंसाने में उस्ताद
कई लोग कपट करने में इतने पटु होते हैं कि उनके कपट का सहसा किसी को पता नहीं लगता। फिर उनके जाल में भी प्रायः ऐसे लोग फंस जाते हैं जो अन्धविश्वासी हों, भूत-प्रेत आदि से पीड़ित हों, धनार्थी हों, या और किसी पद-प्रतिष्ठा; अधिकार या सत्ता के लिए लालायित हों। उन्हें ऐसे धूर्त, मायी लोग बड़ी लम्बीचौड़ी बातें बनाकर अपने चंगुल में फंसा लेते हैं । नीतिकार का यह कथन कितना सत्य है ?
"संलापितानां मधरैर्वचोभिमिथ्योपचारश्च वशीकृतानाम ।
आशावतां श्रद्दधतां च लोके किथिनां वंचयितव्यमस्ति ॥" जिन लोगों के साथ मीठे-मीठे वचनों से बातें की गई हैं और मिथ्या शिष्टाचारों तथा नम्र व्यवहारों से जिन्हें वश में कर लिया गया है, जो आशावान् एवं श्रद्धावान् बन गये हैं, किसी न किसी सांसारिक के स्वार्थ को लेकर आते हैं, उन लोगों को ठगना, या उनके साथ छल करना कौन बड़ी बात है
ऐसे लोग जो दूसरों को धोखा देने एवं ठगने में उस्ताद होते हैं, वे सामान्य स्तर के लोगों से अधिक दिखावा करते हैं, अधिक सतर्क रहकर अपनी माया को छिपाने का प्रयत्न करते हैं। इसी दृष्टि से नीतिकार कहते हैं
असती भवति सलज्जा, क्षारं नीरं च शीतलं भवति । जो कुलटा-व्यभिचारिणी स्त्री होती है, वह अधिक लज्जा करने का नाटक करती है । खारा पानी अपेक्षाकृत अधिक ठंडा होता है ।
ऐसी कई कुलटा स्त्रियाँ होती हैं, जो मायावश अपने पति को किसी न किसी उपाय से मार डालती हैं। अपने जार के साथ व्यभिचार करती हैं अथवा पति के जीते-जी भी अनाचार सेवन करती हैं। पति के दिल में ऐसा विश्वास जमा देती हैं कि उसके सरीखी कोई पतिव्रता नहीं है। परन्तु उनकी माया का पर्दाफाश होते देर नहीं लगती। नीतिकार ने कहा है
विश्वासप्रतिपन्नानां वंचने का विदग्धता ? विश्वास में लिये हुए लोगों के साथ वंचना करने में कौन-सा पाण्डित्य है ? माया : अनेक पापों का स्रोत
जो भी हो, माया करने वाला व्यक्ति बहुत ही सफाई से पहले उस व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में अपना विश्वास जमा लेता है । इसीलिए माया को साधारण पाप नहीं, भयंकर पाप बताया है। कई लोग कहते हैं-माया में तो किसी जीव की
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