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अप्रमाद : हितैषी मित्र ३६१
अप्रमाद के संदेश
अप्रमाद का मुख्य सन्देश भगवान महावीर ने गौतम स्वामी को लक्ष्य करके समस्त साधकों को दिया है
'समयं गोयम ! मा पमायए' हे गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत कर ।
प्रमाद मृत्यु है और अप्रमाद ही अमरत्व है । जहाँ मृत्यु का-सा नाटक जीवन होता है, वहाँ सदैव भय रहता है, मगर जहाँ अप्रमाद है, वहाँ मृत्यु का कोई भय नहीं है, अप्रमादी मनुष्य मृत्यु आती है तो भी हँसते-हँसते उसे वरण करता है । वह मृत्यु से भय नहीं खाता, वरन मृत्यु को अपना सखा मानता है । अप्रमाद का सन्देश यह है कि मनुष्य ! तुम्हें बहुमूल्य एवं छोटा-सा जीवन मिला है, इसे प्रमाद में खोकर नष्ट मत करो अप्रमत्त साधना के द्वारा इसे सार्थक करो। इसका एक क्षण भी व्यर्थ की बातों में मत खोओ। शरीर और मन को निष्क्रिय और आरामतलब न बनाओ, किन्तु इनके द्वारा जीवन की उत्तम साधना अप्रमादी होकर करो ।
भाग्यवाद के भरोसे रह कर आलस्य और अकर्मण्य मत बनो, क्योंकि ऐसा करना महाप्रमाद है, किन्तु ज्ञान-दर्शन- चारित्र की मोक्षसाधना के लिए अविरत पुरुषार्थ करो । अकर्मण्य होकर बैठना महापाप है, अकर्मण्य और आलसी व्यक्ति तमोगुणी है, वह अपने जीवन को प्रमाद में खोकर नरक का पथिक बनता है । जीवन सत्पुरुषार्थ से ही निखरता है, प्रमाद से नहीं । इसलिए सत्पुरुषार्थ एवं शुभकर्त्तव्य करते रहो । मोक्षमार्ग की और — लक्ष्य की ओर चले चलो, बढ़े चलो । जो चलते रहते हैं वे ही एक दिन लक्ष्य का किनारा पा जाते हैं, जो आलसी एवं प्रमादी बन कर बैठे रहते हैं, वे सैकड़ों जन्मों में भी संसार समुद्र को पार नहीं कर सकते । इस लिए 'कर्मण्येवाधिकारस्त्रमा फलेषु कदाचन' इस सिद्धान्त के अनुसार कर्तव्य, धर्माचरण में फलाकांक्षा एवं भाग्यवाद से दूर रह कर पुरुषार्थ करते जाओ । इसीलिए अप्रमाद का संदेश है
'उट्ठिए नो पमायए'
जो कर्तव्यपथ पर उठ खड़ा हुआ है, उसे फिर प्रमाद नहीं करना चाहिए । अप्रमाद को जीवन का सच्चा साथी मान कर चलो । महर्षि गौतम ने इसीलिए स्पष्ट कहा है
'कि हियमध्यमाओ'
हितैषी मित्र कौन है ? अप्रमाद ही है ।
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