Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 415
________________ माया : भय की खान ४०१ ने लाल रखू को बुला कर कहा- तुम्हारे विरुद्ध लाल हड़प जाने की फरियाद आई है, अतः अपना भला चाहते हो तो लाल अपने मित्र को वापस दे दो।" उसने कहा- "आप मुझे व्यर्थ ही धमका रहे हैं, लाल तो मैंने परदेश से आते ही उसकी पत्नी को दे दिया है। "लाल देते समय गवाह भी ४ व्यक्ति थे।" हाकिम ने गवाह बुलाए तो उसने ४ झूठे गवाह पैसे देकर हाजिर कर दिये । हाकिम ने चारों से लाल के विषय में पृथक्-पृथक् पूछा तो कलई खुल गई। धमकाया तो गिड़गिड़ा कर कहा"लाल हमने नहीं देखा। हम तो पैसे के लालच में आ कर गवाही देने आए हैं । आखिर लाल रख को कहा- "तुमने एक तो लाल रखने का अपराध किया, दूसरा अपराध झूठे गवाह लाने का ! सच-सच बताओ, नहीं तो अभी तुम्हारी पीठ पर कोड़े पड़ेंगे।" सेठ लज्जित होकर क्षमा मांगने लगा। फौरन घर से लाकर हाकिम को लाल सौंप दिया। हाकिम ने उसके मित्र को बुला कर वह लाल दे दिया । तब से दोनों की मित्रता टूट गई। माया ऐसी राक्षसी है कि वह वर्षों पुराने स्नेह को भंग कर देती है, शत्रुता में परिणत कर देती है। इसलिए इस भयंकर राक्षसी के चंगुल से बचने का प्रयत्न करना चाहिए। माया : जन्म-जन्म में दुःखदात्री मनुष्य सोचता है कि मैंने किसी के साथ छलकपट कर लिया तो उसे कौन जानता है ? परन्तु मनुष्य चाहे अन्धेरे में, एकान्त वन या गुप्त में, जाने-अन जाने कहीं भी छलकपट का विचार करता है, वह ज्ञानी पुरुषों से तो छिपा नहीं रहता । उसका अपना मन और आत्मा तो साक्षी है। फिर वह माया अन्दर ही अन्दर बारबार चुभन पैदा करती रहती है। मनुष्य के मन पर उसका बोझ हो जाता है और एक बार की हुई माया की अगर आलोचना करके शुद्धि नहीं की जाती है तो वह बार-बार जिस योनि में मनुष्य जन्म लेता है, वहाँ आ कर दुःखित-पीड़ित करती रहती है और फिर माया के कारण मनुष्य को तिर्यंचयोनि मिलती है या विशेष पुण्य किया हो तो स्त्रीयोनि मिलती है । तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है-'माया तैर्यग्योनस्य' माया के कारण तिर्यञ्चयोनि का बन्ध होता है । ज्ञातासूत्र में बताया है कि यद्यपि मल्लिनाथ भगवती ने महाबल के भव में तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया, फिर भी तपस्या में थोड़ी-सी माया के कारण वह स्त्री बनीं ? माया के कारण तिर्यंचयोनि में बार-बार जन्म लेने से मनुष्य को कोई बोध नहीं प्राप्त होता। इसलिए वह फिर सम्भल नहीं सकता, न आत्म शुद्धि कर सकता है । सूत्र कृतांग सूत्र में स्पष्ट कहा है जे इह मायाइ मिज्जइ, आगंता गमायणंतसो । ___जो साधक मनुष्य जीवन में माया में फंस जाता है, वह अनन्त बार गर्भ के दुःखों को पाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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