Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 410
________________ ३६६ आनन्द प्रवचन : भाग ८ हर बात का जबाव देववाणी (संस्कृत भाषा ) में देता है । यहाँ तक कि वह अपनी बीट में स्वर्णमुद्रा देता है । किसी को विश्वास न हो तो अन्दर जा कर शुकराज से पूछ कर परीक्षा कर सकता है । इसकी कीमत एक लाख स्वर्ण मुद्रा है । जगर की बात सुनकर सभी दंग थे, पर किसी का साहस नहीं होता था कि इतना ऊँचा मूल्य देकर इस तोते को खरीद ले । एक सेठ पर बाजीगर के कहने का अचूक प्रभाव पड़ा। वह उसे खरीदने को उत्सुक हुआ । बाजीगर की माया को वह जान न सका । वह झटपट पर्दे के अन्दर गया और शुकराज से पूछा - " शुकराज जी ? क्या आप देवस्वरूप हैं ?" शुक बोला - " अत्र कः सन्देहः । " सेठ ने पूछा - " मैंने सुना है कि आप देववाणी में ही बोलते हैं ।" तोता बोला - " अत्र कः सन्देहः । " फिर जब यह पूछा गया कि "आप अपनी बीट में स्वर्णमुद्रा देते हैं, तब भी उसने वही घड़ाघड़ाया उत्तर दोहरा दिया । "क्या आपकी कीमत एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ हैं ?" सेठ ने पूछा। उसका भी उत्तर 'अत्र कः सन्देहः में मिला । अब तो सेठजी की बांछें खिल गई । आव देखा न तात्र, झट एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ देकर बाजीगर से वह तोता खरीद लिया । तोते को घर लाकर पूछा - " आप कुछ भोजन करेंगे ?" तोते ने उत्तर दिया — अत्र कः सन्देहः ।' यों करते-करते जब उस बीट में भी स्वर्ण मुद्रा न मिली तो सेठ को शंका हुई, उसने तपाक से पूछा - " क्या आप का कथन असत्य था ?" तोते का हर बार वहीं पेटेंट उत्तर था - अत्र कः सन्देहः । सेठ का मन तोते की माया से ठगे जाने के कारण लज्जा और पश्चात्ताप से भर गया, क्योंकि अब तो उसके पास केवल ‘अत्र कः सन्देहः ' ही बचा था । वस्तुतः माया का दाव पर्दे के पीछे ही लगता है । वह प्रकट में आकर कभी मनुष्य को धोखा नहीं दे सकती। आ अधिकांश लोग माया की भयंकरता को न समझ पाने के कारण सत्य की ओट में झूठ की माया में फंस जाते हैं । माया : मुख में राम, बगल में छुरी आपके समक्ष कोई सफेद पोशाक व्यक्ति रामनाम छापे चादर ओढ़े, तिलकछापे लगाये हुए और बहुत सुन्दर ढंग से भाषण करने लगे तो आप झटपट उसके आन्तरिक जीवन को पहिचान नहीं सकेंगे । अन्दर से वह व्यक्ति हृदय से काला होता है । वह अवसर पाते ही दूसरों को धोखा देने में कसर नहीं रखता। ऐसे चार सौ बीस आदमी माया से ओतप्रोत होते हैं । उनकी वह खतरनाक माया 'मुख में राम बगल में छुरी' की कहावत चरितार्थ करते है । हम साधुओं को बहुत-सी बार ऐसे लोगों से सम्पर्क होता है । एक भाई साधु-साध्वियों की बहुत सेवाभक्ति करते थे । वे खादीधारी थे । वाणी से भी बहुत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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