Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 407
________________ माया : भय की खान ३६३ बड़े शहरों में ठग लोग इसी प्रकार भोलेभाले लोगों को फँसाते हैं। एक बार एक कच्छीभाई बम्बई के एक मोहल्ले की छोटी-सी गली में से होकर जा रहा था। अचानक पीछे से एक आदमी आया और कुछ ही फासले पर एक सोने की डली पड़ी थी, उसे कच्छीभाई के देखते उठा कर भागने लगा। उसके पीछे एक दूसरा व्यक्ति आया, जिसने इस कच्छीभाई के कान में धीरे से कहा- “सेठ ! यह आदमी सोने की डली लेजा रहा है, अपन इससे खरीद लें। और बाजार में बेचकर बहुत मुनाफा कमायेंगे । आपके पास कितने रुपये हैं ? निकालिये झटपट । पीछे यह हाथ में नहीं आयेगा।" कच्छीसेठ ने अपनी जेब में चालीस रुपये थे, वे निकाले। उस धूर्त ने कहा-"इतने से काम नहीं होगा। सोना कम से कम २०० रुपये का है । हम इसे आधे दामों में ले लेंगे और क्या है आपके पास ?" कच्छीभाई ने कहा- "मेरे पास और तो कुछ नहीं, एक घड़ी है।" उस धूर्त ने कहा-हाँ, हाँ, बस, अब काम बन जाएगा। मुझे क्या करना है । मैं आपको ही यह सोने की डली उससे दिलवा दूंगा।" बस, उस धूर्त ने दौड़कर सोने की डली वाले धूर्त को पकड़ा। उसे गिरपतार कराने आदि की झूठमूट धमकी दी और वे ४० रुपये तथा लगभग ६० रुपये की हाथघड़ी देकर उससे सोने की डली ली और उस कच्छीभाई को दे दी। कच्छीभाई बहुत खुश होता हुआ जा रहा था। परन्तु मन में शंका थी कि कहीं यह चोरी का माल हुआ और पुलिस को पता लग गया तो मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इसी चिन्ता ही चिन्ता में वह मुख्य सड़क पर आ गया । और एक टैक्सी में बैठकर शिवाजी रोड़ पहुंच गया। वहाँ अपने एक सम्बन्धी से टैक्सी का किराया दिलवा दिया । उसने अपने सम्बन्धी को वह सोने की डली दिखाई और ४०) और एक घड़ी देकर खरीदने की बात कही । सम्बन्धी के मन में सोने की डली देखते ही शंका हुई कि यह सोने का मुलम्मा चढ़ाया हआ है। वह उस डली को लेकर पास में ही रहने वाले एक सुनार के पास गया। उसे दिखाकर पूछा-देखो तो, यह सोना कितने का है ?" सुनार ने उसे कसौटी पर कसा और तेजाब में उसका एक सिरा डाला तो तुरन्त पता लग गया कि यह सोना नहीं, पीतल पर सोने का मुलम्मा चढ़ा हुआ है । लगभग दस रुपयों का होगा।" यह सुनते ही कच्छीभाई का हृदय बैठ गया। अच्छा, धोखा खाया, आज तो ! सोने के बदले पीतल दे गया।" मैं आपसे पूछता हूँ, कि उस कच्छीभाई ने ऐसा धोखा क्यों खाया ? माया के चक्कर में आकर ही तो ? वह माया को पहचान न सका । उन धूर्तों की माया, और सोने की ओट में छिपाया हुआ पीतल उसकी आँखें न देख सकीं। उन आँखों को यह धोखा नहीं खाना चाहिए था। माया : खोटे सिक्के की तरह त्याज्य सेक्सपियर के शब्दों में'All that glitter are not gold.' तमाम चमकीली चीजें सोना नहीं हुआ करतीं। यह बात उसके दिमाग में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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