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अप्रमाद : हितैषी मित्र
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अवसर नहीं मिला । गाँधीजी के साथ तीनों काफी रात गये अपने स्थान पर शिथिल हो चुके थे । आते ही तीनों
दिनभर एक मिनट भी विश्राम करने का महादेव भाई और काका कालेलकर भी थे। लौटे । थकान के मारे उनके शरीर बुरी तरह चारपाइयों पर पड़ गए और निद्राधीन हो गए ।
चार बजे नींद टूटी। गाँधीजी और उनके साथियों का नियम था कि वह सायंकाल सोने से पूर्व और प्रातःकाल जगते ही प्रार्थना किया करते थे । गाँधीजी ने प्रातःकालीन प्रार्थना के लिए एकत्रित हुए काका कालेलकर से पूछा - " शाम की प्रार्थना का क्या हुआ ?" काका ने उत्तर दिया- "बापूजी ! मैं तो थकावट के मारे आते ही सो गया, प्रार्थना करना बिलकुल भूल गया । महादेव भाई ने भी इसी आशय की बात कही और कहा कि बीच में नींद टूटी, तब मैंने चारपाई पर मन ही मन प्रार्थना कर ली और प्रभु से क्षमा माँग कर सो गया । मगर गाँधीजी को इस प्रमाद का दुःख बहुत गहरा था । वे बोले, आज मेरा मन बहुत ही अस्वस्थ है, मैं कल शाम की प्रार्थना क्यों नहीं कर सका ? क्या सोना इतना आवश्यक था कि भगवान का स्मरण तक न किया जाता ?" जब काका ने बापूजी से कहा - "बापू ! आप तो कहते हैंभगवान के नाम से उनका काम बड़ा है । तब उनका काम करते हुए हम सो गए, इसमें बुरा क्या हो गया ?"
गाँधीजी ने कहा - "दुःख तो इस बात का है कि मैं कहीं आलस्य और प्रमाद में नाम और काम दोनों में भूल न करने लग जाऊँ ।”
बन्धुओं ! निद्रा के साथ भी प्रमाद न आ जाए, इस बात का विवेक प्रत्येक साधक को होना चाहिए ।
हमारे शास्त्रों में द्रव्य निद्रा की अपेक्षा भावनिद्रा को बहुत ही भयंकर माना गया है । भावनिद्रा एक प्रकार की अजागृति है, जिसे मैंने आत्म विस्मृति कहा है, वह एक प्रकार की भावनिद्रा ही है । मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अभिमान आदि के चक्कर में पड़ कर भावनिद्रा में सो जाता है। उससे भयंकर अनिष्ट हो जाता है। आत्मा का अमूल्य धन ये चोर भावनिद्राधीन मनुष्य की गफलत का लाभ उठाकर चुरा ले जाते हैं ।
इसीलिए भगवान महावीर ने कहा है
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"सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी, न वीससे पंडिए आसुपन्ने ।”
आशुप्रज्ञ पण्डित पुरुष को मोह
निद्रा में सोये हुए प्राणियों के बीच में रह कर भी सदा जागरूक रहना चाहिए । प्रमादाचरण पर उसे कभी विश्वास न करना चाहिए ।
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प्रमाद के मुख्य कारण
प्रश्न यह होता है कि प्रमाद जब एक प्रकार का भाव है, और वह अन्तर से ही पहले पैदा होता है, तब बाहर में उसका विविध रूप में प्रयोग होता है, जिनका
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